Saturday, 13 February 2016

बड़ी बहना लेटी रहना

बड़ी बहना लेटी रहना
मेरा नाम मोउमिता है । मेरा छोटा भाई दसवी मैं पढ़ता है । वह गोरा चिट्टा और करीब मेरे ही बराबर लम्बा भी है । मैं इस समय १९ की हूँ और वह १५ का । मुझे भैय्या के गुलाबी होंठ बहूत प्यारे लगते हैं । दिल करता है कि बस चबा लूं । पापा गल्फ़ में है और माँ गवर्नमेंट जोब में । माँ जब जोब की वजह से कहीं बाहर जाती तो घर मैं बस हम दो भाई बहन ही रह जाते थे । मेरे भाई का नाम कौशिक है और वह मुझे दीदी कहता है । एक बार मान कुछ दिनों के लिये बाहर गयी थी । उनकी इलेक्शन ड्यूटी लग गयी थी । माँ को एक हफ़्ते बाद आना था । रात मैं डिनर के बाद कुछ देर टी वी देखा फ़िर अपने-अपने कमरे मैं सोने के लिये चले गये।

करीब एक आध घण्टे बाद प्यास लगने की वजह से मेरी नींद खुल गयी । अपनी सीधे टेबल पर बोटल देखा तो वह खाली थी । मैं उठ कर किचन मैं पानी पीने गयी तो लौटते समय देखा कि कौशिक के कमरे की लाइट ओन थी और दरवाज़ा भी थोड़ा सा खुला था । मुझे लगा कि शायद वह लाइट ओफ़ करना भूल गया है मैं ही बन्द कर देती हूँ । मैं चुपके से उसके कमरे में गयी लेकिन अन्दर का नजारा देखकर मैं हैरान हो गयी ।

कौशिक एक हाथ मैं कोई किताब पकड़ कर उसे पढ़ रहा था और दूसरा हाथ से अपने तने हुए लण्ड को पकड़ कर मुठ मार रहा था । मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि इतना मासूम लगने वाला दसवी का यह छोकरा ऐसा भी कर सकता है । मैं दम साधे चुपचाप खड़ी उसकी हरकत देखती रही, लेकिन शायद उसे मेरी उपस्थिति का आभास हो गया । उसने मेरी तरफ़ मुँह फेरा और दरवाजे पर मुझे खड़ा देखकर चौंक गया। वह बस मुझे देखता रहा और कुछ भी ना बोल पाया । फिर उसने मुँह फ़ेर कर किताब तकिये के नीचे छुपा दी । मुझे भी समझ ना आया कि क्या करूं । मेरे दिल मैं यह ख्याल आया कि कल से यह लड़का मुझसे शर्मायेगा और बात करने से भी कतरायेगा । घर मैं इसके अलावा और कोई है भी नहीं जिससे मेरा मन बहलता । मुझे अपने दिन याद आये। मैं और मेरा एक कज़िन इसी उमर के थे जब से हमने मज़ा लेना शुरू किया था तो इसमें कौन सी बड़ी बात थी अगर यह मुठ मार रहा था ।

मैं धीरे-धीरे उसके पास गयी और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसके पास ही बैठ गयी। वह चुपचाप लेटा रहा । मैंने उसके कंधो को दबाते हुई कहा, "अरे यार अगर यही करना था तो कम से कम दरवाज़ा तो बन्द कर लिया होता" । वह कुछ नहीं बोला, बस मुँह दूसरी तरफ़ किये लेटा रहा । मैंने अपने हाथों से उसका मुँह अपनी तरफ़ किया और बोली "अभी से ये मज़ा लेना शुरू कर दिया। कोई बात नहीं मैं जाती हूँ तो अपना मज़ा पूरा कर ले। लेकिन जरा यह किताब तो दिखा। मैंने तकिये के नीचे से किताब निकाल ली। यह हिन्दी मैं लिखे मस्तराम की किताब थी। मेरा कज़िन भी बहूत सी मस्तराम की किताबें लाता था और हम दोनों ही मजे लेने के लिये साथ-साथ पढ़ते थे। चुदाई के समय किताब के डायलोग बोल कर एक दूसरे का जोश बढ़ाते थे।

जब मैं किताब उसे देकर बाहर जाने के लिये उठी तो वह पहली बार बोला, "दीदी सारा मज़ा तो आपने खराब कर दिया, अब क्या मज़ा करुंगा।
"अरे! अगर तुमने दरवाज़ा बन्द किया होता तो मैं आती ही नहीं।
"और अगर आपने देख लिया था तो चुपचाप चली जाती।
अगर मैं बहस मैं जीतना चाहती तो आसानी से जीत जाती लेकिन मेरा वह कज़िन करीब ६ मंथ्स से नहीं आया था इसलिये मैं भी किसी से मज़ा लेना चाहती ही थी। कौशिक मेरा छोटा भाई था और बहूत ही सेक्सी लगता था इसलिये मैंने सोचा कि अगर घर में ही मज़ा मिल जाये तो बाहर जाने की क्या जरूरत? फिर कौशिक का लौड़ा अभी कुंवारा था। मैं कुँवारे लण्ड का मज़ा पहली बार लेती, इसलिये मैंने कहा, "चल अगर मैंने तेरा मज़ा खराब किया है तो मैं ही तेरा मज़ा वापस कर देती हूँ। फिर मैं पलंग पर बैठ गयी और उसे चित लिटाया और उसके मुर्झाये लण्ड को अपनी मुट्ठी में लिया। उसने बचने की कोशिश की पर मैंने लण्ड को पकड़ लिया था। अब मेरे भाई को यकीन हो चुका था कि मैं उसका राज नहीं खोलूंगी, इसलिये उसने अपनी टांगे खोल दी ताकि मैं उसका लण्ड ठीक से पकड़ सकूँ। मैंने उसके लण्ड को बहूत हिलाया-डूलाया लेकिन वह खड़ा ही नहीं हुआ। वह बड़ी मायूसी के साथ बोला "देखा दीदी अब खड़ा ही नहीं हो रहा है।

"अरे! क्या बात करते हो? अभी तुमने अपनी बहन का कमाल कहाँ देखा है। मैं अभी अपने प्यारे भाई का लण्ड खड़ा कर दूंगी। ऐसा कह मैं भी उसके बगल में ही लेट गयी। मैं उसका लण्ड सहलाने लगी और उससे किताब पढ़ने को कहा। "दीदी मुझे शर्म आती है। "साले अपना लण्ड बहन के हाथ में देते शर्म नहीं आयी। मैंने ताना मारते हुए कहा "ला मैं पढ़ती हूँ। और मैंने उसके हाथ से किताब ले ली


बड़ी बहना लेटी रहना - 01
चलते समय मैंने कहा, "चलो आज तुम्हे अपने स्कूटर पर स्कूल छोड़ दूँ" । वह फ़ौरन तैयार हो गया और मेरे पीछे बैठ गया । वह थोड़ा सकुचाता हुआ मुझसे अलग बैठा था । वह पीछे की स्टेपनी पकड़े था । मैंने स्पीड से स्कूटर चलाया तो उसका बैलेंस बिगड़ गया और सम्भालने के लिये उसने मेरी कमर पकड़ ली । मैं बोली, "कसकर पकड़ लो शर्मा क्यों रहे हो?"

"अच्छा दीदी" और उसने मुझे कसकर कमर से पकड़ लिया और मुझसे चिपक सा गया । उसका लण्ड खड़ा हो गया था और वह अपनी जान्घों के बीच मेरे चूतड़ को जकड़े था ।
"क्या रात वाली बात याद आ रही है कौशिक"
"दीदी रात की तो बात ही मत करो । कहीं ऐसा ना हो कि मैं स्कूल मैं भी शुरू हो जाऊँ" । "अच्छा तो बहूत मज़ा आया रात में"
"हाँ दीदी इतना मज़ा जिन्दगी मैं कभी नहीं आया । काश कल की रात कभी खत्म ना होती । आपके जाने के/की बाद मेरा फ़िर खड़ा हो गया था पर आपके हाथ मैं जो बात थी वो कहाँ । ऐसे ही सो गया" ।

"तो मुझे बुला लिया होता । अब तो हम तुम दोस्त हैं । एक दूसरा के काम आ सकते हैं" ।
"तो फ़िर दीदी आज राख का प्रोग्राम पक्का" ।
"चल हट केवल अपने बारे मैं ही सोचता है । ये नहीं पूछता कि मेरी हालत कैसी है? मुझे तो किसी चीज़ की जरूरत नहीं है? चल मैं आज नहीं आती तेरे पास।
"अरे आप तो नाराज हो गयी दीदी । आप जैसा कहेंगी वैसा ही करुंगा । मुझे तो कुछ भी पता नहीं अब आप ही को मुझे सब सिखाना होगा" ।

तब तक उसका स्कूल आ गया था । मैंने स्कूटर रोका और वह उतरने के बाद मुझे देखने लगा लेकिन मैं उस पर नज़र डाले बगैर आगे चल दी । स्कूटर के शीशे मैं देखा कि वह मायूस सा स्कूल में जा रहा है । मैं मन ही मन बहूत खुश हुयी कि चलो अपने दिल की बात का इशारा तो उसे दे ही दिया ।

शाम को मैं अपने कालेज से जल्दी ही वापस आ गयी थी । कौशिक २ बजे वापस आया तो मुझे घर पर देखकर हैरान रह गया । मुझे लेटा देखकर बोला, "दीदी आपकी तबीयत तो ठीक है?" "ठीक ही समझो, तुम बताओ कुछ होमवर्क मिला है क्या" "दीदी कल सण्डे है ही । वैसे कल रात का काफी होमवर्क बचा हुआ है" । मैंने हंसी दबाते हुए कहा, "क्यों पूरा तो करवा दिया था । वैसे भी तुमको यह सब नहीं करना चाहिये । सेहत पर असर पढ़ता है । कोई लड़की पटा लो, आजकल की लड़कियाँ भी इस काम मैं काफी इंटेरेस्टेड रहती हैं" । "दीदी आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे लड़कियाँ मेरे लिये सलवार नीचे और कमीज ऊपर किये तैयार है कि आओ पैंट खोलकर मेरी ले लो" । "नहीं ऐसी बात नहीं है । लड़की पटानी आनी चाहिये" ।

फिर मैं उठ कर नाश्ता बनाने लगी । मन मैं सोच रही थी कि कैसे इस कुँवारे लण्ड को लड़की पटा कर चोदना सिखाऊँ? लंच टेबल पर उससे पूछा, "अच्छा यह बता तेरी किसी लड़की से दोस्ती है?"
"हाँ दीदी सुधा से" ।
"कहाँ तक"
"बस बातें करते हैं और स्कूल मैं साथ ही बैठते हैं" ।
मैंने सीधी बात करने के लिये कहा, "कभी उसकी लेने का मन करता है?"
"दीदी आप कैसी बात करती हैं" । वह शर्मा गया तो मैं बोली, "इसमे शर्माने की क्या बात है । मुट्ठी तो तो रोज मारता है । ख़्यालों मैं कभी सुधा की ली है या नहीं सच बता" । "लेकिन दीदी ख़्यालों मैं लेने से क्या होता है" । "तो इसका मतलब है कि तो उसकी असल में लेना चाहता है" । मैंने कहा
"उससे ज्यादा तो और एक है जिसकी मैं लेना चाहता हूँ, जो मुझे बहूत ही अच्छी लगती है" । "जिसकी कल रात ख़्यालों मैं ली थी" उसने सर हिलाकर हाँ कर दिया पर मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने नाम नहीं बताया । इतना जरूर कहा कि उसकी चूदाई कर लेने के बाद ही उसका नाम सबसे पहले मुझे बतायेगा । मैंने ज्यादा नहीं पूछा क्योंकि मेरी चूत फ़िर से गीली होने लगी थी । मैं चाहती थी कि इससे पहले कि मेरी चूत लण्ड के लिये बेचैन हो वह खुद मेरी चूत मैं अपना लण्ड डालने के लिये गिड़गिड़ाये। मैं चाहती थी कि वह लण्ड हाथ में लेकर मेरी मिन्नत करे कि दीदी बस एक बार चोदने दो । मेरा दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा था इसलिये बोली, "अच्छा चल कपड़े बदल कर आ मैं भी बदलती हूँ" ।

वह अपनी यूनीफोर्म चेंज करने गया और मैंने भी प्लान के मुताबिक अपनी सलवार कमीज उतार दी । फिर ब्रा और पैंटी भी उतार दी क्योंकि पटाने के मदमस्त मौके पर ये दिक्कत करते । अपना देसी पेटीकोट और ढीला ब्लाउज़ ही ऐसे मौके पर सही रहते हैं । जब बिस्तर पर लेटो तो पेटीकोट अपने/अपनी आप आसानी से घुटने तक आ जाता है और थोड़ी कोशिश से ही और ऊपर आ जाता है । जहाँ तक ढीलें ब्लाउज़ का सवाल है तो थोड़ा सा झुको तो सारा माल छलक कर बाहर आ जाता है । बस यही सोच कर मैंने पेटीकोट और ब्लाउज़ पहना था
मेरी चूत मैं अपना लण्ड डालने के लिये गिड़गिड़ाये। मैं चाहती थी कि वह लण्ड हाथ में लेकर मेरी मिन्नत करे कि दीदी बस एक बार चोदने दो । मेरा दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा था इसलिये बोली, "अच्छा चल कपड़े बदल कर आ मैं भी बदलती हूँ" ।

वह अपनी यूनीफोर्म चेंज करने गया और मैंने भी प्लान के मुताबिक अपनी सलवार कमीज उतार दी । फिर ब्रा और पैंटी भी उतार दी क्योंकि पटाने के मदमस्त मौके पर ये दिक्कत करते । अपना देसी पेटीकोट और ढीला ब्लाउज़ ही ऐसे मौके पर सही रहते हैं । जब बिस्तर पर लेटो तो पेटीकोट अपने/अपनी आप आसानी से घुटने तक आ जाता है और थोड़ी कोशिश से ही और ऊपर आ जाता है । जहाँ तक ढीलें ब्लाउज़ का सवाल है तो थोड़ा सा झुको तो सारा माल छलक कर बाहर आ जाता है । बस यही सोच कर मैंने पेटीकोट और ब्लाउज़ पहना था ।

वह सिर्फ़ पायजामा और बनियान पहनकर आ गया । उसका गोरा चित्त चिकना बदन मदमस्त करने वाला लग रहा था । एकाएक मुझे एक आइडिया आया । मैं बोली, "मेरी कमर मैं थोड़ा दर्द हो रहा है जरा बाम लगा दे" । यह बेड पर लेटने का पर्फेक्ट बहाना था और मैं बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी । मैंने पेटीकोट थोड़ा ढीला बांधा था इस लिये लेटते ही वह नीचे खिसक गया और मेरी बीच की दरार दिखाये देने लगी । लेटते ही मैंने हाथ भी ऊपर कर लिये जिससे ब्लाउज़ भी ऊपर हो गया और उसे मालिश करने के लिये ज्यादा जगह मिल गयी । वह मेरे पास बैठ कर मेरी कमर पर (आयोडेक्स पैन बाम) लगाकर धीरे धीरे मालिश करने लगा । उसका स्पर्श (तच) बड़ा ही सेक्सी था और मेरे पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी । थोड़ी देर बाद मैंने करवट लेकर कौशिक की और मुँह कर लिया और उसकी जान्घ पर हाथ रखकर ठीक से बैठने को कहा । करवट लेने से मेरी चूचियों ब्लाउज़ के ऊपर से आधी से ज्यादा बाहर निकाल आयी थी । उसकी जान्घ पर हाथ रखे रखे ही मैंने पहले की बात आगे बढ़ाई, "तुझे पता है कि लड़की कैसे पटाया जाता है?"

"अरे दीदी अभी तो मैं बच्चा हूँ । यह सब आप बतायेंगी तब मालूम होगा मुझे" । आयोडेक्स लगने के दौरान मेरा ब्लाउज़ ऊपर खींच गया था जिसकी वजह से मेरी गोलाइयाँ नीचे से भी झांक रही थी । मैंने देखा कि वह एकटक मेरी चूचियों को घूर रहा है । उसके कहने के अन्दाज से भी मालूम हो गया कि वह इस सिलसिले मैं ज्यादा बात करना चाह रहा है।

"अरे यार लड़की पटाने के लिये पहले ऊपर ऊपर से हाथ फेरना पड़ता है, ये मालूम करने के लिये कि वह बूरा तो नहीं मानेगी" । "पर कैसे दीदी" । उसने पूछा और अपने पैर ऊपर किये । मैंने थोड़ा खिसक कर उसके लिये जगह बनायी और कहा, "देख जब लड़की से हाथ मिलाओ तो उसको ज्यादा देर तक पकड़ कर रखो, देखो कब तक नहीं छुटाती है । और जब पीछे से उसकी आँख बन्द कर के पूछों कि मैं कौन हूँ तो अपना केला धीरे से उसके पीछे लगा दो । जब कान मैं कुछ बोलो तो अपना गाल उसके गाल पर रगड़ दो । वो अगर इन सब बातों का बूरा नहीं मानती तो आगे की सोचों" ।

कौशिक बड़े ध्यान से सुन रहा था । वह बोला, "दीदी सुधा तो इन सब का कोई बूरा नहीं मानती जबकि मैंने कभी ये सोच कर नहीं किया था । कभी कभी तो उसकी कमर मैं हाथ डाल देता हूँ पर वह कुछ नहीं कहती" । "तब तो यार छोकरी तैयार है और अब तो उसके साथ दूसरा खेल शुरू कर" । "कौन सा दीदी" "बातों वाला । यानी कभी उसके सन्तरो की तारीफ करके देख क्या कहती है । अगर मुस्करा कर बूरा मानती है तो समझ ले कि पटाने मैं ज्यादा देर नहीं लगेगी" ।

"पर दीदी उसके तो बहुत छोटे-छोटे सन्तरे हैं । तारीफ के काबिल तो आपके है" । वह बोला और शर्मा कर मुँह छुपा लिया । मुझे तो इसी घड़ी का इंतजार था । मैंने उसका चेहरा पकड़ कर अपनी और घूमते हुए कहा, "मैं तुझे लड़की पटाना सीखा रही हूँ और तो मुझी पर नजरें जमाये है" ।

"नहीं दीदी सच मैं आपकी चूचियों बहूत प्यारी है । बहुत दिल करता है" । और उसने मेरी कमर मैं एक हाथ डाल दिया । "अरे क्या करने को दिल करता है ये तो बता" । मैंने इठला कर पूछा
"कैसे"

उसने पूछा और मेरी चूचींयाँ से मुँह हटा लिया । अब मेरी दोनों चूचियों ब्लाउज़ से आजाद खुली हवा मैं तनी थी लेकिन मैंने उन्हे छिपाया नहीं बल्कि अपना मुँह उसकेउसकी मुँह के पास लेजा कर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिये फ़िर धीरे से अपने होंठ से उसके होंठ खोलकर उन्हे प्यार से चूसने लगी । करीब दो मिनट तक उसके होंठ चूसती रही फ़िर बोली ।

"ऐसे" ।

वह बहूत एक्साइटिड हो गया था । इससे पहले कि मैं उसे बोलूँ कि वह भी एक बार किस करने की प्रक्टीस कर ले, वह खुद ही बोला, "दीदी मैं भी करूं आपको एक बार" "कर ले" । मैंने मुस्कराते हुए कहा
कौशिक ने मेरी ही स्टाइल मैं मुझे किस किया । मेरे होंठों को चूसते समय उसका सीना मेरे सीने पर आकर दबाव डाल रहा था जिससे मेरी मस्ती दो गुणी हो गयी थी । उसका किस खत्म करने के बाद मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और बांहों मैं लेकर फ़िर से उसके होंठ चूसने लगी । इस बार मैं थोड़ा ज्यादा जोश से उसे चूस रही थी । उसने मेरी एक चूचींयाँ पकड़ ली थी और उसे कस कसकर दबा रहा था । मैंने अपनी कमर आगे करके चूत उसके लण्ड पर दबायी । लण्ड तो एकदम तन कर आयरन रोड हो गया था । चुदवाने का एकदम सही मौका था पर मैं चाहती थी कि वह मुझसे चोदने के लिये भीख माँगें और मैं उस पर एहसान करके उसे चोदने की इजाजत दूँ ।

मैं बोली, "चल अब बहूत हो गया, ला अब तेरी मुठ मार दूँ" । "दीदी एक रिक्वेस्ट करूँ" "क्या" मैंने पूछा । "लेकिन रिक्वेस्ट ऐसी होनी चाहिये कि मुझे बुरा ना लगे" ।

ऐसा लग रहा था कि वह मेरी बात ही नहीं सुन रहा है बस अपनी कहे जा रहा है । वह बोला, "दीदी मैंने सुना है कि अन्दर डालने मैं बहूत मज़ा आता है । डालने वाले को भी और डलवाने वाले को भी । मैं भी एक बार अन्दर डालना चाहता हूँ" ।

"नहीं कौशिक तुम मेरे छोटे भाई हो और मैं तुम्हारी बड़ी बहन" । "दीदी मैं आपकी लूँगा नहीं बस अन्दर डालने दीजिये" । "अरे यार तो फ़िर लेने मैं क्या बचा" । "दीदी बस अन्दर डालकर देखूँगा कि कैसा लगता है, चोदूंगा नहीं प्लीज़ दीदी" ।

मैंने उस पर एहसान करते हुए कहा, "तुम मेरे भाई हो इसलिये मैं तुम्हारी बात को मना नहीं कर सकती पर मेरी एक सर्त है । तुमको बताना होगा कि अकसर ख़्यालों मैं किसकी चोदते हो?" और मैं बेड पर पैर फैला कर चित लेट गयी और उसे घुटने के बल अपने ऊपर बैठने को कहा । वह बैठा तो उसके पायजामा के ज़र्बन्द को खोलकर पायजामा नीचे कर दिया । उसका लण्ड तन कर खड़ा था । मैंने उसकी बांह पकड़ कर उसे अपने ऊपर कोहनी के बल लिटा लिया जिससे उसका पूरा वज़न उसके घुटने और कोहनी पर आ गया । वह अब और नहीं रूक सकता था । उसने मेरी एक चूचींयाँ को मुँह मैं भर लिया जो की ब्लाउज़ से बाहर थी । मैं उसे अभी और छेड़ना चाहती थी । सुन कौशिक ब्लाउज़ ऊपर होने से चुभ रहा है । ऐसा कर इसको नीचे करके मेरे सन्तरे धाप दे" । "नहीं दीदी मैं इसे खोल देता हूँ" । और उसने ब्लाउज़ के बटन खोल दिये। अब मेरी दोनों चुचियां पूरी नंगी थी । उसने लपक कर दोनों को कब्जे मैं कर लिया । अब एक चूचींयाँ उसके मुँह मैं थी और दूसरी को वह मसल रहा था । वह मेरी चूचियों का मज़ा लेने लगा और मैंने अपना पेटीकोट ऊपर करके उसके लण्ड को हाथ से पकड़ कर अपनी गीली चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया । कुछ देर बाद लण्ड को चूत के मुँह पर रखकर बोली, "ले अब तेरे चाकू को अपने ख़रबूज़े पर रख दिया है पर अन्दर आने से पहले उसका नाम बता जिसकी तो बहूत दिन से चोदना चाहता है और जिसे याद करके मुठ मारता है" ।
वह मेरी चूचियों को पकड़ कर मेरे ऊपर झुक गया और अपने होंठ मेरे होंठ पर रख दिये । मैं भी अपना मुँह खोलकर उसके होंठ चूसने लगी । कुछ देर बाद मैंने कहा, "हाँ तो मेरे प्यारे भाई अब बता तेरे सपनों की रानी कौन है" ।

"दीदी आप बुरा मत मानियेगा पर मैंने आज तक जितनी भी मुठ मारी है सिर्फ़ आपको ख़्यालों मैं रखकर" ।

"हाय भय्या तो कितना बेशर्म है । अपनी बड़ी बहन के बारे मैं ऐसा सोचता था" । "ओह्ह दीदी मैं क्या करूं आप बहूत खूबसूरत और सेक्सी है । मैं तो कब से आपकी चूचियों का रस पीना चाहता था और आपकी चूत मैं लण्ड डालना चाहता था । आज दिल की आरजू पूरी हुयी" । और फ़िर उसने शर्मा कर आंखे बन्द करके धीरे से अपना लण्ड मेरी चूत मैं डाला और वादे के मुताबिक चुपचाप लेट गया ।

"अरे तो मुझे इतना चाहता है । मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि घर मैं ही एक लण्ड मेरे लिये तड़प रहा है । पहले बोला होता तो पहले ही तुझे मौका दे देती" । और मैंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलानी शुरू कर दी । बीच-बीच मैं उसकी गाँड भी दबा देती ।

"दीदी मेरी किस्मत देखिये कितनी झान्टू है । जिस चूत के लिये तड़प रहा था उसी चूत में लण्ड पड़ा है पर चोद नहीं सकता । पर फ़िर भी लग रहा है की स्वर्ग मैं हूँ" । वह खुल कर लण्ड चूत बोल रहा था पर मैंने बूरा नहीं माना । "अच्छा दीदी अब वादे के मुताबिक बाहर निकालता हूँ" । और वह लण्ड बाहर निकालने को तैयार हुआ ।

अब मेरा फ़र्ज़ बनता था कि मैं उसकी वफादारी का इनाम अपनी चूत चुदवाकर दूँ । इस लिये उससे बोली, "अरे यार तूने मेरी चूत की अपने ख़्यालों में इतनी पूजा की है




बड़ी बहना लेटी रहना - 02
वफादारी का इनाम अपनी चूत चुदवाकर दूँ । इस लिये उससे बोली, "अरे यार तूने मेरी चूत की अपने ख़्यालों में इतनी पूजा की है । और तुमने अपना वादा भी निभाया इसलिये मैं अपने प्यारे भाई का दिल नहीं तोड़ूँगी । चल अगर तो अपनी बहन को चोद्कर बहनचोद बनना ही चाहता है तो चोद ले अपनी जवान बड़ी बहन की चूत" ।
मैंने जान कर इतने गन्दे वर्ड्स उसे कहे थे पर वह बूरा ना मान कर खुश होता हुआ बोला, "सच दीदी" । और फ़ौरन मेरी चूत मैं अपना लण्ड धका धक पेलने लगा कि कहीं मैं अपना इरादा ना बदल दूँ ।

"तू बहुत किस्मत वाला है कौशिक" । मैं उसके कुँवारे लण्ड की चूदाई का मज़ा लेते हुए बोली । क्यों दीदी" "अरे यार तू अपनी जिन्दगी की पहली चूदाई अपनी ही बहन की कर रहा है । और उसी बहन की जिसकी तू जाने कबसे चोदना चाहता था" ।

"हाँ दीदी मुझे तो अब भी यकीन नहीं आ रहा है, लगता है सपने में चोद रहा हूँ जैसे रोज आपको चोदता था" । फिर वह मेरी एक चूचींयाँ को मुँह मैं दबा कर चूसने लगा । उसके धक्कों की रफ्तार अभी भी कम नहीं हुयी थी । मैं भी काफी दिनों के बाद चुद रही थी इसलिये मैं भी चूदाई का पूरा मज़ा ले रही थी ।

वह एक पल रुका फ़िर लण्ड को गहराई तक ठीक से पेलकर ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा । वह अब झड़ने वाला था । मैं भी सातवें आसमान पर पहूँच गयी थी और नीचे से कमर उठा-उठा कर उसके धक्कों का जवाब दे रही थी । उसने मेरी चूचींयाँ छोड़ कर मेरे होंठों को मुँह मैं ले लिया जो कि मुझे हमेशा अच्छा लगता था । मुझे चूमते हुई कस कस कर दो चार धक्के दिये और और "हाय मोउमिता मेरी जान" कहते हुए झड़कर मेरे ऊपर चिपक गया । मैंने भी नीचे से दो चार धक्के दिये और "हाय मेरे राजा कहते हुए झड़ गयी ।

चुदाई के जोश ने हम दोनों को निढाल कर दिया था । हम दोनों कुछ देर तक यूँ ही एक दूसरे से चिपके रहे । कुछ देर बाद मैंने उससे पूछा, "क्यों मज़ा आया मेरे बहनचोद भाई को अपनी बहन की चूत चोदने में" उसका लण्ड अभी भी मेरी चूत में था । उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में जकड़ कर अपने लण्ड को मेरी चूत पर कसकर दबाया और बोला, "बहुत मजा आया दीदी । यकीन नहीं होता कि मैंने अपनी बहन को चोदा है और बहनचोद बन गया हूँ" । "तो क्या मैंने तेरी मुठ मारी है" "नहीं दीदी यह बात नहीं है" । "तो क्या तुझे अब अफसोस लग रहा है अपनी बहन को चोद्कर बहनचोद बनने का" ।

"नहीं दीदी ये बात भी नहीं है । मुझे तो बड़ा ही मज़ा आया बहनचोद बनने मैं । मन तो कर रह कि बस अब सिर्फ़ अपनी दीदी की जवानी का रा ही पीता रहूं । हाय दीदी बल्कि मैं तो सोच रहा हूँ कि भगवान ने मुझे सिर्फ़ एक बहन क्यों दी । अगर एक दो और होती तो सबको चोदता । दीदी मैं तो यह सोच रहा हूँ कि यह कैसे चूदाई हुयी कि पूरी तरह से चोद लिया लेकिन चूत देखी भी नहीं" ।

"कोई बात नहीं मज़ा तो पूरा लिया ना?" "हाँ दीदी मज़ा तो खूब आया" । "तो घबराता क्यों है? अब तो तूने अपनी बहन चोद ही ली है । अब सब कुछ तुझे दिखाऊंगी । जब तक माँ नहीं आती मैं घर पर नंगी ही रहूँगी और तुझे अपनी चूत भी चटवाऊँगी और तेरा लण्ड भी चूसूँगी । बहुत मज़ा आता है" । "सच दीदी" "हाँ । अच्छा एक बात है तो इस बात का अफसोस ना कर कि तेरे सिर्फ़ एक ही बहन है, मैं तेरे लिये और चूत का जुगाड़ कर दूंगी" ।

"नहीं दीदी अपनी बहन को चोदने मैं मज़ा ही अनोखा है । बाहर क्या मज़ा आयेगा" "अच्छा चल एक काम कर तो माँ को चोद ले और मादरचोद भी बन जा" । "ओह दीदी ये कैसे होगा"

"घबरा मत पूरा इन्तज़ाम मैं कर दूंगी । माँ अभी ३८ साल की है, तुझे मादरचोद बनने मैं भी बड़ा मज़ा आयेगा" ।

"हाय दीदी आप कितनी अच्छी हैं । दीदी एक बार अभी और चोदने दो इस बार पूरी नंगी करके चोदूंगा" । "जी नहीं आप मुझे अब माफ़ करिये" । "दीदी प्लीज़ सिर्फ़ एक बार" । और लण्ड को चूत पर दबा दिया ।

"सिर्फ एक बार" । मैंने ज़ोर देकर पूछा । "सिर्फ एक बार दीदी पक्का वादा" ।

"सिर्फ एक बार करना है तो बिलकुल नहीं" । "क्यों दीदी" अब तक उसका लण्ड मेरी चूत मैं अपना पूरा रस निचोड़ कर बाहर आ गया था । मैंने उसे झटके देते हुए कहा, "अगर एक बार बोलूँगी तब तुम अभी ही मुझे एक बार और चोद लोगे" "हाँ दीदी" ।

"ठीक है बाकी दिन क्या होगा । बस मेरी देखकर मुठ मारा करेगा क्या । और मैं क्या बाहर से कोई लाऊंगी अपने लिये । अगर सिर्फ़ एक बार मेरी लेनी है तो बिलकुल नहीं" ।

उसे कुछ देर बाद जब मेरी बात समझ मैं आयी तो उसके लण्ड में थोड़ी जान आयी और उसे मेरी चूत पड़ा रगड़ते हुए बोला, "ओह दीदी यू र ग्रेट" ।

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