Tuesday, 11 July 2017

मोउमिता और उसके ससुर रसिकलाल जी -5

मोउमिता जानती थी की उसके नितूंब मर्दों पर क्या असर करते हैं. उसने जांघों से नीचे की ओर मालिश करने के बहाने अब अपना मुँह ससुर जी के पैरों की ओर और अपने विशाल चूटर ससुर जी के मुँह की ओर कर दिए. मालिश करते हुए उसने अपने चूतर बरे ही मादक धुंग से पीच्चे की ओर उभार दिए थे. रसिकलाल  के दिल पे तो मानो च्छुरी चल गयी. पेटिकोट के महीन कापरे में से बहू की गुलाबी रंग की कच्ची झाँक रही थी. रसिकलाल  बहू के विशाल चूतरो को ललचाई नज़रों से देखता हुआ बोला, " अरे बहू ऐसे मालिश करने में परेशानी होगी. हमार ऊपर जाओ." " है राम आपके ऊपर कैसे सकते हैं?" " अरे इसमें शरमाने की क्या बात है? अपनी एक टाँग हमार एक तरफ और दूसरी टाँग दूसरी तरफ कर लो." " जी आपको परेशानी तो नहीं होगी ?" मोउमिता रसिकलाल  के ऊपर गयी. अब उसका एक घुटना ससुर जी के कमर के एक तरफ और दूसरा घुटना कमर के दूसरी तरफ था. पेटिकोट घुटनों तक ऊपर करना परा. इस मुद्रा में मोउमिता के विशाल चूटर रसिकलाल  के मुँह के ठीक सामने थे. घुटनों से नीचे मोउमिता के गोरे गोरे पैर नंगे थे. मोउमिता रसिकलाल  के पैरों की ओर मुँह करके उसकी जांघों से नीचे की ओर मालिश कर रही थी. रसिकलाल  का मन कर रहा था की बहू के छूटरों के बीच मुँह दे दे. वो पेटिकोट के मेअहीन कापरे में से बहू के विशाल छूटरों पे सिमाटाती हुई ककच्ची को देख रहा था. " बहू तुम जितनी समझदार हो उतनी ही सुन्दर भी हो." " सच पिता जी ? कहीं आप हुमें खुश करने के लिए तो नहीं बोल रहे हैं." " तुम्हारी कसम बहू हम झूट क्यों बोलेंगे? तभी तो हुमने तुम्हें एकद्ूम राकेश के लिए पसंद कर लिया था. शादी से पहले तुमाहरे पीच्चे बहुत लड़के चक्कर लगाते होंगे.?" " जी वो तो सभी लड़कीों के पीछे चक्कर लगाते हैं." " नहीं बहू सभी लड़कियाँ तुम्हारी तरह सेक्सी नहीं होती. बोलो, लड़के बहुत तुंग करते थे क्या?" " हां पिता जी करते तो थे." " क्या करते थे बहू?" " अब हम आपको वो सब कैसे बता सकते हैं?" " अरे फिर से वही शरमाना. चलो बताओ. हुमें ससुर नहीं, अपना दोस्त समझो." " जी सीटियाँ मारते थे. कभी कभी तो बहुत गंदे गंदे कॉमेंट भी देते थे. बहुत सी बातें तो हुमें समझ ही नहीं आती थी." " क्या बोलते थे बहू?" " उनकी गंदी बाते हमें सम्झ नहीं आती थी. लेकिन इतना ज़रूर पता था की हमारी च्चटिओं और नितुंबों पे कॉमेंट देते थे. कैसे खराब होते हैं लड़के. घर में मा बेहन नहीं होते क्या?" " और क्या क्या करते थे?" " जी, क्लास में भी लड़के जान बूझ के अपनी पेन्सिल हमार पैरों के पास फेंक देते थे और उसे उठाने के बहाने हमारी स्कर्ट के अंडर टाँगों के बीच में झाँकने की कोशिश करते थे. स्कूल की ड्रेस स्कर्ट थी नहीं तो हम सलवार कमीज़ ही पहन के स्कूल जाते. लड़के लोग होते ही बहुत खराब हैं." " नहीं बहू लड़के खराब नहीं होते. वो तो बेचारे तुम्हारी जवानी से परेशान रहते होंगे." " लेकिन किसी लड़की पे गंदे गंदे कॉमेंट देना और उसकी टाँगों के बीच में झाँकना तो बदतमीज़ी होती है ना पिताजी?" " इसमें बदतमीज़ी की क्या बात है बहू. बचपन से ही हर मारद के मन में औरत की टाँगों के बीच में झाँकने की जिगयसा होती है और जब वो बरा हो जाता है टब तो औरत की टाँगों के बीच में पहुँचना ही उसका लक्ष्या बन जाता है." " हा! ये भी क्या लक्ष्या हुआ.? मारद लोग तो होते ही ऐसे हैं." " लेकिन बहू लड़कियाँ भी तो कम नहीं होती. देखो ना आज कल तो शहर की ज़्यादातर लड़कियाँ शादी से पहले ही अपना सुबकुच्छ दे देती हैं. तुम भी तो शहर की हो बहू." " अक्च्छा पिता जी! क्या मतलूब आपका? हम वैसे नहीं हैं. इतने लड़के हमार पीच्चे परे थे, यहाँ तक की काई मास्टर जी लोग भी हमार पीच्चे परे थे, लेकिन हुमने तो शादी से पहले ऐसा वैसा कुकच्छ नहीं किया
"सच बहू? यकीन नहीं होता की इतनी सेक्सी लड़की को लड़कों ने कुँवारा छ्होर दिया होगा." " हुँने किसी लड़के को आज तक हाथ भी नहीं लगाने दिया." " आज तक ? बेचारा राकेश अभी तक कुँवारा ही है. सुहाग रात को भी हाथ नहीं लगाने दिया?" रसिकलाल  हंसता हुआ बोला. " हा ...पिता जी आप तो बहुत खराब हैं. सुहाग रात को तो पति का हक़ बनता है. उन्हें थोरे ही हम माना कर सकते हैं." मोउमिता बारे ही मादक धुंग से अपने छूटरों को रसिकलाल  के मुँह की ओर उचकाती हुई बोली. रसिकलाल  मोउमिता के छूटरों से सिमट कर उनकी दरार में जाती हुई कच्ची को देख देख कर पागल हो रहा था. " बहू एक बात कहूँ? तुम शादी के बाद से बहुत ही खूबसूरत हो गयी हो." " पिता जी आप तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे शादी से पहले हम बदसूरत थे." " अरे नहीं बहू शादी से पहले भी तुम बहुत सुन्दर थी लेकिन शादी के बाद से तो तुम्हारी जवानी और भी निखार आई है. हर लड़की की जवानी में शादी के बाद एकद्ूम निखार जाता है." " ऐसा क्यों पिताजी?" मोउमिता ने भोलेपन से पूकच्छा. " बहू, शादी से पहले लड़की एक कक़ची कली होती है. कली को फूल बनाने का काम तो मारद ही कर सकता है ना. सुहाग रात को लड़की एक ककच्ची कली से फूल बुन जाती है. जैसे कली में फूल बुनके निखार जाता है वैसे ही लड़की की जवानी में शादी के बाद निखार आने लगता है." " ऐसा क्या निखार आया हमारी जवानी में? हम तो पहले भी ऐसे ही थे." " बहू तुम्हारी जवानी में क्या निखार आया वो हुंसे पूच्छो. तुम्हारा बदन एकद्ूम भर गया है. कापरे भी टाइट होने लगे हैं. देखो ये नितूंब कैसे फैल गये हैं." रसिकलाल  मोउमिता के दोनो छूटरों पे हाथ फेरता हुआ बोला. " तुम्हारी ये ककच्ची भी कितनी छ्होटी हो गयी है. करीब करीब पुर ही नितूंब इस ककच्ची के बाहर हैं. शादी से पहले तो ऐसा नहीं था ना." आख़िर मोउमिता का प्लान सफल होने लगा था. रसिकलाल  का हाथ उसके उछके हुए छूटरों को सहला रहा था. कभी कभी रसिकलाल  उसकी पंटयलिने पे हाथ फेरता. मोउमिता को बहुत मज़ा रहा था. रसिकलाल  फिर बोला, " बहू लगता है तुम्हें ये गुलाबी रंग की ककच्ची बहुत पसंद है." " हा..! पिताजी आपको कैसे पता हुँने कौन से रंग की ककच्ची पहनी है?" " बहू तुम्हारे नितूंब हैं ही इतने चौरे की उनके ऊपर कसे हुए पेटिकोट में से ककच्ची भी नज़र रही है." " बस पेटिकोट ऊपर उठा के....."" बहुत ही नालयक है. लेकिन उसका लंड बरा तो है ना?"" जी वो तो ख़ासा लूंबा और मोटा है."" उस गधे के लंड जैसा ? तब तो हमारी बहू की तृप्ति कर देता होगा."" हाअ....! उस गधे के जितना तो किसी का भी नहीं हो सकता, और फिर सिर्फ़ बरा होने से कुकच्छ नहीं होता. मारद को भी तो औरत को तृप्त करने की कला आनी चाहिए. वो तो अक्सर पेंटी भी नहीं उतारते, बस साइड में करके ही कर लेते हैं."" ये तो ग़लत बात है. ऐसे तो हमारी बहू की प्यास शांत नहीं होसकती. लेकिन बहू तुम्हें ही कुकच्छ करना चाहिए. अगर औरत कामकला में माहिर ना हो तो मारद दूसरी औरतों की ओर भागने लगता है. बीवी को बिस्तेर में बिल्कुल रंडी बन जाना चाहिए तभी वो अपने पातिका दिल जीत सकती है."" आपकी बात सही है पिताजी, हम तो सब कुकच्छ करने के लिए तयारहैं. लेकिन मारद अपनी बीवी के साथ जो कुकच्छ भी करना चाहता है उसके लिए पहल तो उसे ही करनी होती है ना. वो जो भी करना चाहें हम तो हुमेशा उनका साथ देने के लिया तय्यार हैं."" हमें लगता है की हमारी बहू प्यासी ही रह जाती है. क्यों सही बात है?"" जी.."" कहो तो हम उसे समझाने की कोशिश करें?. ऐसा कब तक चलेगा ?"" नही नहीं पिताजी, उनसे कुकच्छ कहने की ज़रूरत नहीं है."" तो फिर ऐसे ही तारपति रहोगी बहू?"" और कर भी क्या सकते हैं ?"रसिकलाल  को अब विश्वास हो गया था की उसका बेटा बहू के जिस्म की प्यास्को नहीं बुझा पता है. इतनी खूबसूरत जवानी को इस तरह बर्बाद करना तो पाप है. अब तो उसे ही कुच्छ करना होगा. मोउमिता फिर से रसिकलाल  की टाँगों की मालिश करने लगी. मोउमिता का मुँह अब रसिकलाल  की ओर था. बार बार इस तरह से झुकती की उसकी बरी बरी चूचियाँ ओरबरा रसिकलाल  को नज़र आने लगते. रसिकलाल  अक्च्ची तरह जानता था की आजसूँेहरी मौका था. लोहा भी गरम था. आज अगर बहू की जवानिलूटने में कामयाब हो गया तो ज़िंदगी बुन जाएगी. रसिकलाल  का लंड बुरी तरह फनफ़नेया हुआ था, और टाइट लंगोट की साइड में से आधबाहर निकल आया था और उसकी जाँघ के साथ सता हुआ था. रसिकलाल  बोला," देखो बहू तुम चाहती हो तुम्हारी जवानी की आग ठंडी हो ?"" जी कौन औरत नहीं चाहती?"" हम तुम्हारे ससुर हैं. तुम्हारी जवानी की आग को ठंडा करना हमारा धरम है. हमें ही कुकच्छ करना होगा."" आप क्या कर सकते हैं पिताजी, हुमारी किस्मेट ही ऐसी है ?"मोउमिता एक ठंडी साँस लेते हुए रसिकलाल  की जाँघ पे तैल लगती हुई बोली." ऐसा ना कहो बहू. अपनी किस्मत तो अपने हाथ में होती है. अरे बहू, तुमने हुमारी कमर से ले के टाँगों तक तो मालिश कर दी लेकिन एक जगह तो छ्होर ही दी."" कौन सी ?"" अरे धोती के नीचे भी बहुत कुकच्छ है. वहाँ भी मालिश कर दो."" जी वहाँ..?"" भाई नहीं करना चाहती हो तो कोई बात नहीं हम वहाँ कमला से मालिश करवा लेंगे."" नहीं नहीं पिताजी कमला से क्यों ? हम हैं ना." मोउमिता ने शरमाते हुए रसिकलाल  की धोती ऊपर कर दी. नीचे का नज़ारा देख के उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. कसे हुए लंगोट का उभार देखने लायक था. मोउमिता ने लंगोट वाले इलाक़े को छ्होर के लंगोट कछारों ओर मालिश कर दी." लीजिए पिताजी वहाँ भी मालिश कर दी."" बहू वहाँ तो अभी और भी बहुत कुकच्छ है."" और तो कुच्छ भी नहीं है."" ज़रा लंगोट के नीचे तो देखो बहुत कुच्छ मिलेगा."" हाअ......! लंगोट के नीचे ! वहाँ तो आपका वो है. हमें तो बहुत शरम रही है."" शरम कैसी बहू ? तुम तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे कभी मारद का लंड नहीं देखा."" जी किसी पराए मारद का तो नहीं देखा ना."" अक्च्छा तो तुम हुमें पराया समझती हो ?""नहीं नहीं पिता जी ऐसी बात नहीं है."" अगर ऐसी बात नहीं है तो इतना शर्मा क्यों रही हो ? वो तुम्हें काटेगा नहीं. चलो लंगोट खोल दो ओर वहाँ की भी मालिश कर दो."" जी हम तो आपकी बहुँ हैं. हम आपके उसको कैसे हाथ लगा सकते हैं ?"" ठीक है बहू कोई बात नहीं, वहाँ की मालिश हम कमला से करवा लेंगे."" नहीं नहीं पिताजी ये आप क्या कह रहे हैं ? किसी पराई औरत से तो अच्छा है हम ही वहाँ की मालिश कर दें."" तो फिर श्रमा क्यों रही हो बहू ?" ये कहते हुए रसिकलाल  ने बहू का हाथ पाकर के लंगोट पे रख दिया.लंगोट के ऊपर से ससुर जी के मोटे लंड की गर्माहट से मोउमिता काँप गयी. काँपते हुए हाथों से मोउमिता ससुर जी का लंगोट खोलने की कोशिश कर रही थी. आख़िर आज ससुर जी का लंड देखने की मुराद पूरी हो ही जाएगी. जैसे ही लंगोट खुला रसिकलाल  का लंड लंगोट से आज़ाद होके एक झटके के साथ टन के खरा हो गया. 11 इंच के लूंबे मोटे काले लंड को देख के मोउमिता के मुँह से चीख निकल गयी." ऊई माआअ.. ये क्या है..?!"" क्या हुआ बहू..?"" जी.. इतना लूंबा..."" नहीं पसंद आया ?"" जी वो बात नहीं है. मारद का इतना बरा भी हो सकता है ? सच पिताजी ये तो बिकुल उस गधे के जैसा है. अब समझी सासू मया आपको क्यों गढ़ा कहती हैं."" घबराव नहीं बहू हाथ लगा के देख लो. काटेगा नहीं." मोउमिता मन ही मन सोचने लगी काटेगा तो नहीं लेकिन मेरी छूट ज़रूर फाड़ देगा. बाप का लंड तो बेटों के लंड से कहीं ज़्यादा टगरा निकला कंछन उस फौलादी लॉड को सहलाने के लिए बेचैन तो थी ही. उसने ढेर सारा टेल अपने हाथ में ले के रसिकलाल  के ताने हुए लॉड पे मलना शुरू कर दिया. ना जाने कितनी चूतो का रूस पी के इतना मोटा हो गया था. क्या भयंकर सुपरा था. मोटा लाल हाथोरे जैसा. कुँवारी चूत के लिए तो बहुत ख़तरनाक हो सकता था. मोउमिता को दोनो हाथों का इस्तेमाल करना पर रहा था, फिर भी रसिकलाल  का लॉडा उसके हाथों में नहीं समा रहा था. इतना मोटा था की दोनो हाथों से उसकी मोटाई नापनी पारी. जुब जुब मोउमिता का हाथ लंड पे मालिश करते हुए नीचे की ओर जाता, लंड का मोटा लाल सुपारा और भी ज़्यादा भयंकर लगने लगता." पिता जी एक बात पूच्छुन? बुरा तो नहीं मानेंगे?"" नहीं बहू ज़रूर पुकच्छो."" जी सासू मया तो आपसे बहुत खुश होंगी?"" वो क्यों?" रसिकलाल  अंजान बनता हुआ बोला." इतना लूंबा और मोटा पा के कौन औरत खुश नहीं होगी?"" अरे नहीं बहू ये ही तो हुमारी बड किस्मती है. बस एक ग़लती कार्बैठे, उसका फल अभी तक भुगत रहे हैं."" कैसी ग़लती पिताजी?"" अरे बहू सुहाग रात को जोश जोश में कुकच्छ ज़ीज़दा ज़ोर से धक्के मार दिए और पूरा लंड तुम्हारी सासू मया की चूत में पेल दिय.टुम्हारि सासू मया तो कुँवारी थी. झायल नहीं सकी. बहुत खून ख़राबा हो गया था. बेचारी बेहोश हो गयी थी. बस उसके बाद से मन में इतना दर्र बैठ गया की आज तक छुड़वाने से डरती है. बरी मिन्नत करके 6 महेने में एक बार चोद पाते हैं, उसके बाद भी आधे से ज़्यादा लंड नहीं डालने देती."" ये तो ग़लत बात है. पति की ज़रूरत पूरी कर्मा तो औरत का दराम होता है. कोशिश करती तो कुच्छ दिनों में सासू मया की आदत पर जाती.""क्या करें हुमारी दास्तान भी कुच्छ तुम्हारे जैसी है."" ओह ! फिर तो आप भी हुमारी तरह प्यासे हैं."" हन बहू. सासू मा को तो हुमारा पसंद नहीं आया लेकिन तुम्हें हुमारा लंड पसंद आया या नहीं?"" जी ये तो बहुत प्यारा है. इतना बरा तो औरत को बारे नसीब सेमिलता है. सच, हुमें तो सासू मा से जलन हो रही है. " मोउमिता बारे प्यार से रसिकलाल  के लॉड को सहलाते हुए बोली. उसने फिर से अपना मुँह रसिकलाल  की टाँगों की ओर और छूटेर रसिकलाल  के मुँह की ओर कर रखे थे. लंड और टाँगों की मालिश करने के बहाने वो आगे की ओर झुकी हुई थी और छूटेर रसिकलाल  की ओर उचका रखे थे." अरे इसमें जलन की क्या बात है ? आज से ये तुमहारा हुआ." रसिकलाल  बहू के छूटरों पे हाथ फेरता हुआ बोला." जी मैं आपका मुतलब समझी नहीं."" देखो बहू, हुंसे तुम्हारी बर्बाद होती ये जवानी देखी नहीं जाती. हुमारे रहते हुमारी प्यारी बहू तारपति रहे ये तो हमारे लिए शर्म की बात है. आख़िर हम भी तो मारद हैं. हुमारे पास भी वो सूब है जो तुम्हारे उस नालायक पति के पास है. अब हुमें ही अपनी बहू की प्यास बुझानी परेगी." रसिकलाल  का हाथ पेटिकोट के ऊपर सही बहू के विशाल छूटरों की दरार में से होता हुआ उसकी चूत पेआ गया." हाअ.... ! पिता जी ये आप क्या कह रहे हैं? आपका मुतलब आप हुमेन....ऽप्नि बहू को..?"" हन बहू हम अपनी बहू को चोदेन्गे. तुम्हारी इस जवानी को एक मोटे टगरे लंड की ज़रूरत है. हुमारी टाँगों के बीच में अब भी बहुत दूं है."रसिकलाल  का हाथ अब धीरे धीरे बहू की टाँगों के बीच उसकी फूली हुई चूत को पेटिकोट और पेंटी के ऊपर से ही सहला रहता." पिता जी...! प्लीज़..! ऐसा नहीं कहिए. हम आपके ज़ज्बात समझते हैं लेकिन आख़िर हम आपकी बहू हैं. आपके बेटे की पत्नी हैं. आपकी बेटी के समान हैं." मोउमिता रसिकलाल  के बारे बारे बॉल्स को सहलाती हुई बोली." ये सूब सही है. तुम हमारी बहू हो, हुमारी बेटी के समान हो.टभि तो हुमारा फ़र्ज़ है की हम तुम्हें खुश रखें. कोई गैर औरत होती तो हुमें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. लेकिन अपनी ही बहू के साथ ऐसा अत्याचार हो ये हमें मंज़ूर नहीं." रसिकलाल  ने ये कहते हुए बहू की चूत को अपनी मुट्ही में भर के दबा दिया." इसस्सस्स ...... आअ.. छ्होरिय ना पिताजी, आपने तो फिर पाकर ली हमारी. सोचिए बेटी के समान बहू के साथ ऐसा करना पाप नहीं होगा ?" मोउमिता ने अपनी चूत छुराने की कोई कोशिश नहीं की. बल्कि टाँगें इस प्रकार चौरी कर ली की रसिकलाल  अच्छी तरह उसकी चूत पाकर सके. रसिकलाल  बहू की चूत को और भी ज़ोर से मसलता हुआ बोला," तो क्या ये जानते हुए भी की बेटी के समान बहू की चूत प्यासी है हम चुप बैठे रहें? जुब बहू मायका छ्होर के ससुराल आती है तो सौराल वालों का फ़र्ज़ बनता है की वो अपनी बहू की सूब ज़रूरतों ककयाल रखें."" लेकिन हुँने तो आपको पिता के समान माना है, अब आपके साथ ये सब कैसे कर सकते हैं."" ठीक है बहू, अगर हमारे साथ नहीं कर सकती तो कोई बात नहीं हम गाओं में एक ऐसा टगरा मारद ढूंड लेंगे जिसका लंड हमारी तरह लूंबा हो और जो हुमारी बहू को अक्च्ची तरह चोद के उसके जिसमकी प्यास बुझा सके. बोलो ये मंज़ूर है?"" है राम !... ....ये क्या कह रहे हैं? किसी दूसरे से तो अक्च्छा है की आप ही....." मोउमिता दोनो हाथों से अपना मुँह च्छूपाटी हुई बोली." इसमे शरमाने की क्या बात है ? बोलो क्या कहना चाहती हो बहू?"रसिकलाल  ने अब अपना हाथ बहू के पेटिकोट के अंदर डाल दिया था रूसकी जंघें सहला रहा था." जी. हुमारा मुतलब था की अगर इतनी ही मजबूरी हो जाए तो घर की इज़्ज़त तो घर में रहनी चाहिए. किसी गैर मारद को हम अपनी जवानी कैसे दे सकते हैं ? हुमारी इज़्ज़त घर वालों के पास हीरहेगी. "" तो तुम हुमें तो गैर नहीं समझती हो?"" नहीं नहीं, पिताजी आप गैर कैसे हो सकते है ?"" सच बहू तुम जितनी खूबसूरत हो उतनी ही समझदार भी हो. घर कीज़्ज़त घर में ही रहनी चाहिए. तुम्हारी सूब ज़रूरतें घर मेंही पूरी की जा सकती हैं. हम इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे की तुम्हें किसी गैर मारद के लंड की ज़रूरत ना महसूस हो."रसिकलाल  समझ गया था की बहू भी वासना की आग में जुल रही है क्योंकि उसकी कच्ची उसकी चूत के रूस से बिल्कुल भीग चुकी थी. लेकिन अपने ससुर से चुड़वाने में झिझक रही थी. बहू की झिझक दूर करनेके लिए उसे शुरू में थोरी ज़ोर ज़बरदस्ती करनी परेगी. लोहा गरम है, अगर अभी इस सुनहरी मौके का फ़ायदा नहीं उठाया तो फिर बहुको नहीं चोद पाएगा. लेते लेते तो कुच्छ कर पाना मुश्किल था. रामललूत के खरा हो गया." क्या हुआ पिता जी आप कहाँ जेया रहे हैं ?"" कहीं नहीं बहू, अब तुम ठीक से सूब जगह टेल लगा दो."रसिकलाल  के खरे होते ही उसकी धोती और लंगोट नीचे गिर गये. अब वो बिल्कुल नंगा बहू के सामने खरा था. उसका तना हुआ 11 इंच का मोटकला लंड बहुत भयंकर लग रहा था. ये नज़ारा देख के मोउमिता कीटो साँस ही गले में अटक गयी. उसने खरे हुए ससुर जी की टाँगों में तैल लगाना शुरू किया. ससुर जी का ताना हुआ लॉडा उसके मुँह से सिर्फ़ कुच्छ इंच ही दूर था. मोउमिता का मन कर रहा था की उस मोटे मूसल को चूम ले." बहू तोरा हुमारी च्चती पे भी मालिश कर दो."ससुर जी की च्चती पे मालिश करने के लिए मोउमिता को भी खरा होना परा. लेकिन ससुर जी का ताना हुआ लंड उसे नज़दीक नहीं आने दे रहता. वो ससुर जी को छेड़ते हुए हँसती हुई बोली," पिता जी, आपका गधे जैसा वो तो हुमें नज़दीक आने ही नहीं दे रहा, आपकी च्चती पे कैसे मालिश करें ?"" तुम कहो तो काट दें इसे बहू ?"" है राम !... ये तो इतना प्यारा है. इसे नहीं काटने देंगे हम."मोउमिता ससुरजी के लॉड को बारे प्यार से सहलाती हुई बोली." तो फिर हुमें कुच्छ और सोचना परेगा."" हन पिताजी कुच्छ करिए ना. आपका ये तो बहुत प्रोबें कर रहा है."" ठीक है बहू, हम ही कुच्छ करते हैं." ये कहते हुए रसिकलाल  ने बहू के पेटिकोट का नारा खींच दिया. नारा खुलते ही पेटिकोट बहू की टाँगों में गिर गया. दूसरे ही पल रसिकलाल  ने बहू की बगलों में हाथ डाल के उसे ओपपार उठा लिया और खींच के अपनी बाहों में जाकर लिया. इससे पहले की मोउमिता की कुच्छ समझ में आता, उसने अपने आप को ससुर जी की च्चती से चिपका पाया. वो सिर्फ़ ब्लाउस और पनटी में थी. उसका पेटिकोट पीच्चे ज़मीन पे परा हुआ था. ससुरजी का विशाल लंड उसकी टाँगों के बीच ऐसे फँसा हुआ था जैसे वो उसकी सवारी कर रही हो." ऊई माआ..... पिता जीई.... ये आपने क्या किया ? छ्होरिय ना हुमें."मोउमिता अपने आप को च्छूराने का नाटक करती हुई बोली." तुम ही ने तो कहा था की हुमारा लंड तुम्हें नज़दीक नहीं आने दराहा है. देखो ना अब प्राब्लम डोर हो गयी."" सच आप तो बारे खराब हैं. अपनी बहू का पेटिकोट कोई ऐसे उतारता है ?"" मजबूरी थी बहू उतारना परा. तुम्हारा पेटिकोट तुम्हें नज़दीक नहीं आने देता. लेकिन अब देखो ना तुम हुमारे कितनी नज़दीक गाइहो." रसिकलाल  दोनो हाथों से बहू के विशाल छूटरों को दबा रहा था. बेचारी छ्होटी सी कच्ची मोटे मोटे छूटरों की दरार में घुसी जारही थी. रसिकलाल  के मोटे लॉड ने बहू की कच्ची के कापरे को सामने से भी उसकी चूत की दोनो फांकों के बीच में घुसैर दिया .मोउमिता को रसिकलाल  के लंड की गर्माहट बेचैन कर रही थी. इतने दिनों से जिस लंड के सपने ले रही थी वो आज उसकी जांघों के बीच फँसा हुआ उसकी चूत से रगर खा रहा था." आए है ! कितने मजबूर हैं आप जो आपको अपनी बहू का पेटिकोट उतरना परा. लेकिन ऐसे चिपके हुए हम आपकी च्चती की मालिश कैसे कर सकते हैं? छ्होरिय ना हुमें प्लीज़.."" कोई बात नहीं बहू च्चती पे नहीं तो पीठ पे तो मालिश कर सकती हो."मोउमिता ससुर जी के बदन से बैल की तरह लिपटी हुई थी. उसकसीर ससुर जी की च्चती पे टीका हुआ था. उसने दोनो हाथों से पीठ की मालिश शुरू कर दी. रसिकलाल  भी बहू की पीठ और चोटरों पे हातफेर रहा था. रसिकलाल  के लॉड से रगर खा के मोउमिता की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी और पेंटी भी बिल्कुल उसके रूस में भीग गयी थी. रसिकलाल  के लंड का ऊपरी भाग बहू की चूत के रूस में भीगा हुआ था. मोउमिता का सारा बदन वासना की आग में जुल रहा था." बहू तुम हुमारी पीठ की मालिश करो, हम भी तुम्हारी पीठ कीमालिश कर देते हैं." रसिकलाल  ने अपने हाथों में टेल ले कर बहूकी पीठ पे मलने शुरू कर दिया. धीरे धीरे उसने बहू के विशालनितुंबों पे से उसकी पेंटी को उनके बीच की दरार में सरका दिया औरदोनो नितुंबों की दबा दबा के मालिश करने लगा. मोउमिता के मुँह सेहल्की हल्की सिसकियाँ निकल रही थी. पीठ पे मालिश करने के बहानेधीरे धीरे रसिकलाल  ने बहू के ब्लूसे के हुक खोल के ब्रा का हुक भीखोल दिया. मोउमिता को महसूस तो हो रहा था की शायद ससुर जी उसकेब्लाउस और ब्रा का हुक खोल रहे हैं लेकिन वो अंजान बनी रही. जुबससुर जी ने उसका ब्लाउस और ब्रा को उतारना शुरू किया तो वो हार्बारा केबोली," है राम !... पिता जी... ये क्या कर रहे हैं ? हुमारा ब्लाउस क्योंउतार रहे हैं ?" लेकिन मोउमिता ने रसिकलाल  से अलग होने की कोई कोशिशनहीं की." कहो तो बहू तुम्हारे ब्लाउस के ऊपर ही टेल लगा दें ? बिना ब्लाउसउतारे तुम्हारी पीठ की कैसे मालिश होगी ?" और इससे पहले कीमोउमिता कुच्छ बोलती रसिकलाल  ने एक हाथ से बहू को अपने चिपका के रखाऔर दूसरे हाथ को ढीले हुए ब्रा के अंडर डाल कर बहू की बरी बरीचूचीोन को मसालने लगा. मोउमिता की चूचीोन पे मारद का हाथ लगेदो महीने हो चुके थे. वो तो अब वासना आग में पागल हुई जेया रहीथी.
" इसस्स.... आआआआः. . पिता जी.... इसस्स्स्सस्स. .. आईईइ.. आअ.. छ्होरियनेया.. आह... धीरे. .. अब छ्होर दीजिए हुमें.. प्लीज़. . एयाया.. इय्ाआ. .इसस्सस्स धीरे.. .. क्या कर रहे हैं."" कुच्छ नहीं बहू, तुम तो हमारी च्चती पे मालिश कर नहीं सकी,हुमने सोचा हम ही अपनी बहू की च्चती पे मालिश कर देते हैं."बातों बातों में रसिकलाल  ने बहू का ब्लाउस और ब्रा उसके बदन से अलगकर दिया. अब बहू के बदन पे सिर्फ़ एक छ्होटी सी कच्ची थी. रसिकलाल  नेएक हाथ नीचे की ओर ले जा के बहू के चूत पे से उसकी कच्ची को साइडमें कर दिया. अब रसिकलाल  का लंड बहू की नंगी चूत से रगर रहाथा." इससस्स... हटिए भी पिताजी. आप तो सच मच बहुत खराब हैं. अपनीजवान बहू को इस तरह कोई नंगी करता है ? अब हुमें कापरे पहननेदीजिए.""बहू इसे कोई नंगी कर्मा थोरे ही कहते हैं. तुम्हें किसी मारद नेनंगी करके चोदा जो नहीं है, इसीलिए नंगी होने का मुतलब नहींसमझती हो. अभी तो तुम कच्ची पहने हुए हो."" है राम ! तो अभी हुमारी कच्ची भी उतारेंगे क्या ?""हन बहू."" नहीं ना पिताजी.... प्लीज़. .. आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?"" बहू, एक मारद , औरत की कच्ची क्यों उतारता है ?"" जी वो .. हुमारा मुतलब है... एम्म्म.. ."" शरमाओ नहीं, बताओ तुम्हारा पति तुम्हारी कच्ची क्यों उतारता है?"रसिकलाल  बहू की चूचियाँ मसल रहा था और उसका मोटा लूंबा लंड बहूकी चूत की दोनो फांकों के बीच से होता हुआ पीछे की ओर दोनोनितुंबों के बीच में से झाँक रहा था. मोउमिता से अब और सहननहीं हो रहा था. वो चाहती थी की ससुर जी अब जल्दी से जल्दी अपनागधे जैसा लॉडा उसकी चूत में पेल दें. लेकिन एक तो औरत जात थीऊपर से रिश्ता भी कुच्छ ऐसा था." बोलती क्यों नहीं बहू ?"" जी, वो तो हुमें.. हुमारा मुतलब है.. वो तो हुमें चोदने के लिएहमारी कच्ची उतारते हैं." मोउमिता दोनो हाथों से अपना मुँहच्छूपाते हुए बोली. पहली बार उसने ससुर जी के सामने चोदने जैसेशब्द का इस्तेमाल किया.
" लेकिन उस नालयक ने तुम्हें कभी नंगी करके नहीं चोदा ना?"" नहीं पिताजी. लेकिन ये सूब आप क्यों पूच रहे हैं.?"" इसलिए बहू की अब हम तुम्हारी कच्ची उतारके और तुम्हें पूरी तरहनंगी करके चोदेन्गे. अब तुम्हें पता चलेगा की जुब मारद औरत कोनंगी करके चोदता है तो औरत को कितना मज़ा आता है."" है राम ! पिता जी.. हमें चोद के आपको पाप लगेगा."" इस लाजबाब जवानी को चोदने से अगर पाप लगता है तो लगे. अरेबहू अपने जिस्म की आवाज़ सुनो. अपनी चूत की आवाज़ सुनो. बताओ अगरतुम्हारी चूत को इस लंड की ज़रूरत नहीं है तो उसने हुमारे लंडको गीला क्यों कर दिया है.?"" आप अपने गधे जैसे उसको हुमारे वहाँ रगरेंगे तो हुमारी गीलीनहीं होगी क्या ?"" अब इतना गीला कर ही दिया है तो उसे अपनी प्यारी खूबसूरत सीचूत का रूस भी पी लेने दो."लोहा गरम था. रसिकलाल  ने अब देर कर्मा ठीक नहीं समझा. बस एक बारकिसी तरह बहू की चूत में लंड फँसा ले, फिर सूब ठीक होजाएगा. उसने एक झटके में बहू की चूत के रूस में सनी हुई पेंटीपाकर के नीचे खिसका दी . अब मोउमिता बिल्कुल नंगी थी.रसिकलाल  ने बहू को अपनी बाहों में जाकर लिया और अपने होंठ बहू केरसीले होंठों पे रख दिए. मोउमिता भी ससुर जी से लिपटी हुई थी.उसकी चूत बुरी तरह गीली थी. चूत के रूस में सनी पेंटी उसकेपैरों में पारी हुई थी. मोउमिता ने पैरों पे उचक के रसिकलाल  के तनेहुए लंड को अपनी टाँगों के बीच में इस तरह अड्जस्ट किया की वो उसकीचूत पे ठीक से रगर सके. रसिकलाल  बहू की चूत की गर्मी औरमोउमिता ससुर जी के विशाल लंड की गर्मी अपनी चूत पे महसूस कररही थी. काफ़ी देर बहू के होंठों का रस पॅयन करने के बाद रसिकलाल मोउमिता से अलग हो गया और थोरी दूर से उसकी मस्त जवानी कोनिहारने लगा. क्या बाला की खूबसूरत थी बहू. गोरी गोरी मांसलचूचियाँ. पतली कमर और उसके नईएचए फैलते हुए विशाल चूटर.तराशि हुई मांसल जांघों के बीच में घने काले बाल !रसिकलाल  ने आज तक किसी औरत की चूत पे इतने घने और लंबे बाल नहीं देखेथे. ऐसी जवानी देख के रसिकलाल  मदहोश हो गया." ऊफ़.. पिता जी अपनी बहू को नंगी करते आपको ज़रा भी शरम नहींआई. अब ऐसे घूर घूर के क्या देख रहे हैं ?" मोउमिता शर्मा करएक हाथ से अपनी चूत और एक हाथ से अपनी चूचीोन को ढकने कीनाकामयाब कोशिश करती हुई बोली." सच बहू आज तक हुमने इतनी मस्त जवानी नहीं देखी. इस बेचारेलंड को निराश ना करो, थोरा सा तो अपनी चूत का रूस पीला दो. चलोअगर तुम हुमें नहीं देना चाहती हो तो कोई बात नहीं, हम सिर्फ़ लंडका सुपरा तुम्हारी चूत में डाल के निकाल लेंगे . बेचारा थोरा सापानी पी लेगा. अब तो ठीक है ना?"" ठीक है पिताजी. हुमें चोदेन्गे तो नहीं ना ?" मोउमिता जान केचोदने जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रही थी. उसके मुँह से ये सुन केरसिकलाल  और भी पागल हुआ जा रहा था."नहीं चोदेन्गे बहू. तुम्हारी इज़ाज़त के बिना तुम्हें कैसे चोद सकतेहैं."
ये कहते हुए रसिकलाल  ने नंगी मोउमिता को अपनी बलिष्ठ बाहों में उठालिया और बिस्तेर पे पटक दिया. अब वो पागलों की तरह बहू के पूरेबदन को चूमने लगा. फिर उसने बहू की मोटी जांघें फैला दी. बहूके जांघों के बीच का नज़ारा देख के उसका कलेजा मुँह को गया.घनी लंबी झांतों के बीच में से बहू की चूत के खुले हुए होंठझाँक रहे थे मानों बरसों से प्यासे हों. नंगी मोउमिता अपने ससुरके सामने टाँगें फैलाए परी हुई थी. शरम के मारे उसने दोनोहाथों से अपना मुँह ढक लिया." ऐसे क्या देख रहे हैं पिताजी..?"" हमें भी तो इस जन्नत का नज़ारा देखने दो बहू. बहू तुमने तोटाँगों के बीच में पूरा जंगल उगा रखा है. कभी सॉफ नहींकिया? इतनी खूबसूरत चूत को यों घने बालों के पीच्चे क्योंच्छूपा रखा है?"" इसलिए की कहीं आपकी नज़र ना लग जाए."" आए हाई ! बहू तुम्हारी इसी अदा ने तो हमें मार डाला है."अब रसिकलाल  से ना रहा गया. उसने बहू की मादक चूत को आगे झुक केचूम लिया.  

कहानी जारी रहेगी   

2 comments:

  1. है राम ! तो अभी हुमारी कच्ची भी उतारेंगे क्या ?""हन बहू."" नहीं ना पिताजी.... प्लीज़. .. आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?"" बहू, एक मारद , औरत की कच्ची क्यों उतारता है ?"" जी वो .. हुमारा मुतलब है... एम्म्म.. ."" शरमाओ नहीं, बताओ तुम्हारा पति तुम्हारी कच्ची क्यों उतारता है?"रसिकलाल बहू की चूचियाँ मसल रहा था और उसका मोटा लूंबा लंड बहूकी चूत की दोनो फांकों के बीच से होता हुआ पीछे की ओर दोनोनितुंबों के बीच में से झाँक रहा था. मोउमिता से अब और सहननहीं हो रहा था. वो चाहती थी की ससुर जी अब जल्दी से जल्दी अपनागधे जैसा लॉडा उसकी चूत में पेल दें. लेकिन एक तो औरत जात थीऊपर से रिश्ता भी कुच्छ ऐसा था." बोलती क्यों नहीं बहू ?"" जी, वो तो हुमें.. हुमारा मुतलब है.. वो तो हुमें चोदने के लिएहमारी कच्ची उतारते हैं."

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    1. VO BHENCHOD GHODE JAISA LODA BHU KO KHILA KE LUND KI GULAM BNA DENA CHAHTA HEY.

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