राकेश बोल रहा था, " मोउमिता मेरी जान ससुराल जा कर तो तुम हुमें भूल ही गयी हो. अब तो एक महीना बीत गया है और कितना तर्पओगि? बहुत याद आ रही है तुम्हारी." " अक्च्छा जी ! बरी याद आ रही है आपको मेरी. अचानक इतनी याद क्यों आ रही है?" " खूबसूरत बीवी से एक महीना अलग रहना तो बहुत मुश्किल होता है मेरी जान. सच, सारा दिन खड़ा रहता है तुम्हारी याद में." " आपका वो तो पागल है. उसे कहिए एक महीना और इंतज़ार करे." " ऐसे ना कहो मेरी जान एक महीना और इंतज़ार करना तो बहुत मुश्किल है." " तो फिर अभी कैसे काम चल रहा है?" " अभी तो मैं तुम्हारी पॅंटी से ही काम चला रहा हूँ." " हाअ… ! आपने फिर मेरी पॅंटी ले ली. जिस दिन वहाँ से चली थी उस दिन सुबह नहाने से पहले पॅंटी उतारी थी. सोचा था गाओं में जा के धो लूँगी. गंदी ही सूटकेस में रख ली थी. यहाँ आ के देखा तो पॅंटी गायब थी." " बरी मादक खुश्बू है तुम्हारी पॅंटी की. याद है रात को उतावलेपन में जुब पहली बार तुम्हें चोडा था तो पॅंटी उतारने की भी फ़ुर्सत नहीं थी, बस चूत के ऊपर से पॅंटी को साइड में करके ही पेल दिया था तुमाहारी फूली हुई चूत में." " अक्च्ची तरह याद है मेरे राजा. अब आप इस पॅंटी को भी फार दोगे? अब तक दो पॅंटी तो पहले ही फार चुके हो." " मोउमिता मेरी जान इस बार आओगी तो पॅंटी नहीं तुम्हारी चूत ही चोद चोद के फार दूँगा." " सच ! मैं भी तो यही चाहती हूँ." " क्या चाहती हो मेरी जान ?" " की आप मेरी ………. हटिए भी ! आप बहुत चालाक हैं." " बोलो ना मेरी जान फोन पे भी शर्मा रही हो." " आप तो बस मेरे मुँह से गंदी गंदी बातें सुनना चाहते हैं." " है ! जुब चुद्वाने में कोई शरम नहीं तो बोलने में कैसी शरम? तुम्हारे मुँह से सुन के शायद मेरे लंड को कुकच्छ शांति मिले. बोलो ना मेरी जान तुम भी क्या चाहती हो?" " ऊफ़…! आप भी बस. मैं भी तो चाहती हूँ की आप मुझे इतना चोदे की मेरी….. मेरी चूत फॅट जाए. मैं…. मेरी चूत अब आपके उसके लिए बहुत तरप रही है." " किसके लिए मेरी जान." " आपके ल्ल..लंड के लिए, और किसके लिए." मोउमिता मुस्कुराते हुए बोली. " सच मोउमिता अब और नहीं सहा जाता. मालूम है इस वक़्त भी तुम्हारी पॅंटी मेरे खड़े हुए लंड पे लटक रही है." " है राम, मेरी पॅंटी की किस्मत भी मेरी चूत की किस्मत से अक्च्ची है. अगर आपने मुझे पहले ही बुला लिया होता तो इस वक़्त आपके लंड पे पॅंटी नहीं मेरी चूत होती." " कोई बात नहीं, इस बार जुब आओगी तो इतना चोदुन्गा की तुंग आ जाओगी. बोलो मेरी जान जी भर के दोगि ना?" " हां मेरे राजा आप लेंगे तो क्यों नहीं दूँगी. मैने तो सिर्फ़ टाँगें चौरी करनी हैं, बाकी सारा काम तो आप ही ने करना है." " ऐसा ना कहो मेरी जान. चूत देने की कला तो कोई तुमसे सीखे. " अक्च्छा जी ! तो अपनी बीवी को चोदना इतना अक्च्छा लगता है? वैसे यहाँ एक औरत कमला है जो मालिश बहुत अक्च्ची करती है. मेरे पुर बदन की मालिश करती है. यहाँ तक की मेरी चूत की भी मालिश कर दी. कहती है ' बहू रानी आपकी चूत की मालिश करके मैं इसे ऐसा बना दूँगी की आपके पति हमेशा आपकी चूत से ही चिपके रहेंगे.' तो मैने उससे कहा की मैं भी तो यही चाहती हूँ. वरना हमारे पति देव को तो हमारी चूत की याद महीने में एक दो बार ही आती है. ठीक कहा ना जी? उसने चूत के बालों पे भी कुकच्छ किया है." " क्या किया है मेरी जान बताओ ना." " मैं क्यों बताओन? खुद ही देख लीजिएगा. लेकिन चूत पे से पॅंटी साइड में करके पेलने से नहीं पता चलेगा. ये देखने के लिए तो पूरी नंगी करके ही चोदना परेगा." " एक बार आ तो जाओ मेरी जान, अब कप्रों की ज़रूरत नहीं परेगी. हमेशा नंगी ही रखूँगा." " ही ! ऐसी बातें ना करिए. मेरी चूत बिल्कुल गीली हो गयी है. आपके पास तो मेरी पॅंटी है, मेरे पास तो कुकच्छ भी नहीं है." " वहाँ गाओं में किसी को ढूंड लो." राजेश मज़ाक करता हुआ बोला. " छ्ची कैसी बातें करते हैं? वैसे आपके गाओं में आदमी कम गधे ज़्यादा नज़र आते हैं. एक दिन तो हद ही हो गयी. मैं खेत में जा रही थी. मेरे आगे आगे एक गढ़ा और गधि चल रहे थे. गधे का लंड खरा हुआ था. बाप रे ! तीन फुट से भी लंबा होगा. बिल्कुल ज़मीन पे लगने को हो रहा था. अचानक वो आगे चल रही गधि पे चढ़ गया और पूरा तीन फुट का लंड उसकी चूत में पेल दिया. सच मेरी तो चीख ही निकल गयी. ज़िंदगी में पहली बार इतना लंबा लंड किसी के अंडर जाता देखा."
" तुम अपना ध्यान रखना मेरी जान. खेतों में अकेली मत जाना. तुम्हारे कातिलाना चूतरो को देख के कोई गढ़ा तुम पे ना चढ़ जाए. कहीं तुम्हारी चूत में तीन फुट का लंड पेल दिया तो?." राजेश हंसता हुआ बोला. " हटिए, आप तो बारे वो हैं ! आपको तो शरम भी नहीं आती. जिस दिन सुचमुच किसी गधे ने मेरे अंडर तीन फुट का लंड पेल दिया ना उस दिन के बाद मेरी चूत इतनी चौरी हो जाएगी की आपके काबिल नहीं रह जाएगी. बोलिए मंज़ूर है?" " अगर तुम्हारी चूत की प्यास गधे के लंड से बुझ जाती है तो मुझे मंज़ूर है. मैं तो तुम्हें खुश और तुम्हारी चूत को तृप्त देखना चाहता हूँ." " जाइए भी हम आपसे नहीं बोलते." " नाराज़ मत हो मेरी जान मैं तो मज़ाक कर रहा था." " अक्च्छा अब फोन रखिए मुझे खाना भी बनाना है." " ठीक है मेरी जान, दो तीन दिन बाद फिर फोन करूँगा. बाइ." राजेश ने फोन रख दिया. राजेश की बातें सुन कर मोउमिता की चूत गीली हो गयी थी. वो रिसीवर रखने ही वाली थी की उसे एक और क्लिकक की आवाज़ सुनाई डी. ज़रूर कोई और भी उनकी बातें सुन रहा था. मोउमिता के घर तो एक्सटेन्षन था नहीं. फोन का एक्सटेन्षन तो यहीं ससुराल में था. वो भी ससुर जी के कमरे में. तो क्या ससुर जी उनकी बातें सुन रहे थे? बाप रे, अगर ससुर जी ने उनकी बातें सुन ली तो क्या सोच रहे होंगे? उधर रसिकलाल बहू के मुँह से ऐसी सेक्सी बातें सुन कर हैरान रह गया. आख़िर बहू उतनी भी भोली नहीं थी जितनी शकल से लगती थी. अब रसिकलाल बहू को च्छूप च्छूप के देखने के चक्कर में रहता था. एक रात मोउमिता देर तक जग रही थी. शायद नॉवेल पढ़ रही थी. सब लोग सो गये थे. रसिकलाल की आँखों में नींद कहाँ? वो बिस्तेर पर लेटा करवटें बदल रहा था. तभी उसे बहू के कमरे में हरकत सुनाई दी. राम लाल ध्यान से देखने लगा. तभी बहू के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो रसिकलाल के कमरे के बगल वाले बाथरूम की ओर जा रही थी. बहू के हाथ में कोई सफेद सी चीज़ थी. ऐसा लग रहा था जैसे उसकी कछि हो. बहू ने बातरूम में घुस के दरवाज़ा बंद कर लिया. रसिकलाल जल्दी से दबे पावं उठा और बाथरूम के दरवाज़े से कान लगा कर सुनने लगा. इतने में प्सस्सस्स्स्स्स्सस्स………………… की आवाज़ आने लगी. बहू पेशाब कर रही थी. बहू के पेशाब के लिए पैर फैला कर बैठने और उसकी चूत के खुले हुए होंठों के बीच से निकलती हुई पेशाब की धार की कल्पना से ही रसिकलाल का लॉडा तन गया. जैसे ही प्सस्स….. की आवाज़ बूँद हुई रसिकलाल जल्दी से अपने कमरे में जा कर लाइट गया. इतने में बहू बाथरूम से बाहर आई ओर अपने कमरे की ओर जाने लगी. उसके हाथ में वो सफेद चीज़ अब नहीं थी. अपने कमरे में जा कर बहू ने दरवाज़ा बंड कर लिया और लाइट भी ऑफ कर दी. शायद सोने जा रही थी. रसिकलाल फिर से उठा और बाथरूम में गया. उसका गेस सही निकला. एक कोने में धोने के कप्रों में बहू की सफेद कछि पारी हुई थी. रसिकलाल ने बाथरूम का दरवाज़ा अंडर से बंड किया और बहू की कच्ची को उठा लिया. अभी तक उस कच्ची में गर्माहट थी. शायद अभी अभी उतारी थी. रसिकलाल ध्यान से कछि को देखने लगा. कच्ची में दो लूंबे काले बॉल फँसे हुए थे. कम से कम चार इंच लूंबे तो थे ही. ये देख कर रसिकलाल का लंड हरकत करने लगा. बाप रे ये तो बहू की चूत के बॉल थे. इसका मुतलब बहू की चूत पे खूब लंब और घने बाल हैं.खछि का जो हिस्सा बहू की चूत पे टच करता था वहाँ गहरे रंग का दाग सा था. शायद बहू की पेशाब और चूत के रस का दाग था. रसिकलाल ने दोनो बॉल निकाल लिए और कच्ची को सूंघने लगा. ऊफ़ क्या जान लेवा गूँध थी. ये तो बहू की चूत की खुश्बू थी. रसिकलाल औरत की चूत की गंध अच्छी तरह पहचानता था. रसिकलाल ने जी भर के बहू की कच्ची को सूँघा और फिर उस जगह को अपने लॉड के सुपरे पे टीका दिया जो बहू की चूत से टच करती थी. रसिकलाल ने कच्ची को अपने लंड पे खूब रग्रा. उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो बहू की चूत पे अपना लंड रगर रहा हो. कच्ची इतने नाज़ुक थी की रसिकलाल को डार था कहीं उसका मोटा फौलादी लॉडा बहू की कच्ची ना फाड़ दे. कुच्छ देर कच्ची को लंड पे रगर्ने और बहू की चूत की कल्पना करके रसिकलाल अपने को कंट्रोल ना कर सका और उसने ढेर सारा वीरया कच्ची में उंड़ेल दिया. फिर उसने कच्ची धोने में डाल दी और वापस अपने कमरे में चला गया. अगले दिन जब मोउमिता अपने कापरे धोने लगी तो उसे अपनी पॅंटी पे दाग नज़र आया. ऐसा दाग तो मारद के वीरया का होता है. मोउमिता सोच में पर गयी की ये दाग उसकी पनटी में कैसे आया. घर में तो सिर्फ़ एक ही मारद था और वो थे ससुर जी. कहीं ससुर जी तो नहीं…… लेकिन वो उसकी पॅंटी के साथ क्या कर रहे थे? कहीं ये उसका वहाँ तो नहीं था ? लेकिन मोउमिता को शक होता जा रहा था की ससुर जी उस पर फिदा होते जा रहे हैं. मोउमिता के बदन को ऐसे देखते थे जैसे आँखों से ही चोद रहे हों. अब तो बात बात पे मोउमिता की पीठ और छूटरों पे हाथ फेरने लगे थे. कभी मोउमिता की पीठ पे हाथ रख के उसकी ब्रा को फील करते हुए कहते ' हुमारी बहू रानी बहुत अक्च्ची है', कभी उसकी पतली कमर में हाथ डाल के कहते ' हम बहू के बिना ना जाने क्या करेंगे', कभी मोउमिता के चूतोन पे हाथ रख कर कहते ' जाओ बहू अब आराम कर लो'. जब से मोउमिता ने कमला से ससुर जी के कारनामे सुने थे तुब से वो भी ससुर जी को एक औरत की नज़र से देखने लगी थी. ससुर जी के विशाल लंड के वर्णन ने तो उसकी नींद ही हराम कर दी थी. मोउमिताको समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे. ससुर जी तो पिता के समान थे. लेकिन मोउमिता के बदन को ललचाई नज़रों से देखना, बात बात पे उसके छूटरों पे हाथ फेरना, फोन पे चुपके से उसकी बातें सुनना, और अक्सर ऐसी बातें करना जो कोई ससुर अपनी बहू के साथ नहीं करता, और फिर उसकी पॅंटी पे वीरया का वो दाग, इस बात को साफ करता था की ससुर जी का दिल उसपे आ गया है. मोउमिता के मन में ये बातें चल रही थी की एक रोज़ जब मोउमिता सवेरे जल्दी सो के उठ गयी और उसने खिड़की के बाहर झाँका तो देखा की ससुर जी आँगन में खुली हवा में कसरत कर रहे हैं. मोउमिता उत्सुकतावश पर्दे के पीछे से उन्हें देखने लगी. ससुर जी ने सिर्फ़ एक लंगोट पहन रखा था. मोउमिता उनका बदन देख कर हैरान रह गयी. ससुर जी लुम्बे चौरे थे. उनका बदन काला और बिल्कुल गाथा हुआ था. लेकिन सुबसे ज़्यादा हैरान हुई ससुर जी के लंगोट का उभार देख कर. ऐसा लगता था की जो कुछ भी लंगोट के अंडर क़ैद था वो ख़ासा बरा था. मोउमिता को कमला की बातें याद आने लगी. उसके बदन में चीटियाँ रेंगने लगी. मोउमिता को विश्वास होने लगा की ससुर जी का लंड ज़रूर ही काफ़ी बरा होगा क्योंकि उसके पति राकेश का लंड भी 8 इंच का था और देवर रामू का लंड तो 10 इंच का था. बाप का लंड बरा होगा इसीलिए तो बच्चों का भी इतना बरा है. और अगर साली पहली चुदाई में बेहोश हो गयी थी टब तो ज़रूर ही बहुत बरा होगा. पहली बार मोउमिता के मन में इक्च्छा जागी की काश वो ससुर जी का लंड देख सकती. मोउमिता को ससुराल आए एक महीने से ज़्यादा हो चला था. अब वो रोज़ सुबह जल्दी उठ जाती और पर्दे के पीछे से ससुर जी को कसरत करते देखती. मोउमिता मन ही मन कल्पना करती की ससुर जी का लंड भी गधे के लंड जैसा ख़ासा लूंबा, मोटा और काला होगा. लेकिन क्या देवर रामू के लंड से भी बरा होगा? आख़िर एक मारद का लंड कितना बरा हो सकता है? मोउमिता का विचार पुक्का होता जा रहा था की किसी ना किसी दिन तो वो ससुर जी के लंड के दर्शन ज़रूर करेगी. हालाँकि अब मोउमिता को विश्वास हो गया था की ससुर जी अपनी जवान बहू पर फिदा हो चुके हैं लेकिन फिर भी वो उनकी परीक्षा लेना चाहती थी. परदा तो अब भी करती थी लेकिन अब वो ससुर जी के सामने जाने से पहले अपनी चुननी से सिर इस प्रकार से ढकति की उसकी छती पूरी तरह खुली रहे. ससुरजी के लिए दूध का ग्लास टेबल पे रखने के लिए इस तरह से झुकती की ससुर जी को उसके ब्लाउस के अंडर झाँकेने का पूरा मौका मिल जाए. वो अक्सर चूरिदार पहनती थी क्योंकि ससुरजी ने एक दिन उसको कहा था ' बहू चूरिदार में तुम बहुत सुन्दर लगती हो. सच तुम्हारा ये चूरिदार और कुर्ता तो तुम्हारी जवानी में चार चाँद लगा देता है.' ससुर जी के सामने अपने छूटरों को कुकच्छ ज़्यादा ही मटका के चलती थी. परदा करने का मोउमिता को बहुत फ़ायदा था, क्योंकि वो तो चुननी के अंडर से ससुरजी पे क्या बीट रही है देख सकती थी लेकिन ससुर जी उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाते थे. एक दिन की बात है. मोउमिता नहाने जा रही थी, लेकिन बाथरूम का बल्ब फ्यूज़ हो गया था. मोउमिता सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट में ही थी. मोउमिता ने एक कुर्सी पे चॅड कर बल्ब बदलने की कोशिश की लेकिन कुर्सी की टाँगें हिल रही थी और मोउमिता को गिरने का डर था. उसने सास को आवाज़ दी. दो तीन बार पुकारा लेकिन सासू मा शायद पूजा कर रही थी. उसे मोउमिता की आवाज़ सुनाई नहीं दी. रसिकलाल आँगन में अख़बार पढ रहा था. बहू की आवाज़ सुन कर वो बाथरूम में गया. वहाँ का नज़ारा देख के तो उसका कलेजा धक रह गया. बहू सिर्फ़ पीटिकोआट और ब्लाउस में कुर्सी पे खरी हुई थी और उसके हाथ में बल्ब था. पेटिकोट नाभि से करीब आठ इंच नीचे बँधा हुआ था. बहू का की गोरी कमर और मांसल पेट पूरा नज़र आ रहा था. मोउमिता ससुर जी को सामने देख कर हर्बरा गयी और एक हाथ से अपनी च्चातियों को ढकने की नाकामयाब कोशिश करने लगी. हकलाती हुई बोली, " पिताजी. आप...!" " हां बेटी तुम सासू मा को आवाज़ें दे रही थी. वो तो पूजा कर रही है इसलिए मैं ही आ गया. बोलो क्या काम है?" रसिकलाल मोउमिता की जवानी को ललचाई नज़रों से देखता हुआ बोला. " जी बल्ब फ्यूज़ हो गया है. लगाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कुर्सी हिल रही है. सासू मा को बुला रही थी की अगर वो मुझे पाकर लें तो मैं बल्ब बदल सकूँ." मोउमिता का एक हाथ अब भी अपनी छातिओन को छुपाने की कोशिश कर रहा था. " कोई बात नहीं बहू मैं तुम्हें पकर लेता हूँ." " जी आप ?" " घबराओ नहीं गीरौंगा नहीं." ये कहते हुए रसिकलाल ने कुर्सी के ऊपर खरी मोउमिता की जांघों को पीच्चे से अपनी बाहों में जाकर लिया. मोउमिता के भारी नितूंब रसिकलाल के मुँह से सिर्फ़ दो इंच ही दूर थे. रनलाल को पेटिकोट में से मोउमिता की गुलाबी रंग की पॅंटी की झलक मिल रही थी. ऊओफ़ ! 80 % चूतेर तो पॅंटी के बाहर थे. मोउमिता के विशाल चूतेर रसिकलाल के मुँह के इतने नज़दीक थे की उसका दिल कर रहा था , उन विशाल छूटरों के बीच में मुँह डाल दे. मोउमिता बुरी तरह से शर्मा गयी लेकिन क्या करती ? जल्दी से बल्ब लगाने की कोशिश करने लगी. बल्ब लगाने के लिए उसे हाथ च्चती पर से हटाना परा. रसिकलाल के दिल पे तो जैसे छुरी चल गयी. बहू की बरी बरी चूचियाँ ब्लाउस से बाहर गिरने को हो रही थी. पेटिकोट इतना नीचे बँधा हुआ था की बहू के नितूंब वहीं से शुरू हो जाते थे. कुर्सी अब भी हिल रहा थी. रसिकलाल ने इस सुनेहरा मौके का पूरा फ़ायदा उठाया. उसने अपने पैर से कुर्सी को और हिला दिया. बहू गिरने को हुई तो रसिकलाल ने उसकी जानहगों को अपनी ओर खींच कर और अक्च्ची तरह जाकर लिया. जांघों को अपनी ओर खींचने से मोउमिता के छ्होटेर पीच्चे की ओर हो गये और रसिकलाल का मुँह बहू के विशाल छूटरों के बीच की दरार में घुस गया. ऊफ़ क्या मादक खुश्बू थी बहू के बदन की. करीब 10 सेकेंड तक रसिकलाल ने अपना मुँह बहू के छूटरों की दरार में दबा के रखा. पेटिकोट पॅंटी समैत बहू के छूटरों के बीच फँस गया. मोउमिता ने किसी तरह जल्दी से बल्ब लगाया. " पिताजी बल्ब लग गया." " ठीक है बहू." ये कहते हुए रसिकलाल ने एकद्ूम से उसकी टाँगें छ्होर दी. जैसे ही रसिकलाल ने मोउमिता की टांगे छोरि मोउमिता का बॅलेन्स बिगड़ गया और वो आगे की ओर गिरने लगी. रसिकलाल ने एकद्ूम पीच्चे से हाथ डाल कर उसे गिरने से बचा लिया. लेकिन उसका हाथ सीधा मोउमिता की बरी बरी चूचीोन पे परा. अब मोउमिता की दोनो चूचियाँ रसिकलाल के हाथों में थी. रसिकलाल ने उसे चूचीोन से पाकर के अपनी ओर खींच लिया. अब सीन ये था की रसिकलाल पीच्चे से बहू से चिपका हुआ था. बहू के विशाल छूटेर रसिकलाल के सखत होते हुए लंड से सटे हुए थे और बहू की दोनो चूचियाँ रसिकलाल के हाथों में दबी हुई थी. ये सूब तीन सेकेंड में हो गया. " अरे बहू मैं ना पकर्ता तो तुम तो गिर जाती. ना जाने कितनी चोट लगती. ऐसे काम तुम्हें खुद नहीं करने चाहिए. हुमें कह दिया होता. आगे से ऐसा नहीं करना" रसिकलाल बहू की चूचीोन पर से हाथ हटता हुआ बोला. " जी पिता जी. आगे से ऐसा नहीं करूँगी."
रसिकलाल जल्दी से बाहर चला गया क्योंकि अब उसका लंड टन गया था और बहू को नज़र आ जाता.
लेकिन मोउमिता भी अनारी नहीं थी. उसे अक्च्ची तरह पता था की ससुर जी ने मौके का पूरा फ़ायदा उठाया था. उसकी जांघों को जिस तरह से उन्होने पकरा था वैसे एक ससुर अपनी बहू की टाँगें नहीं पकर्ता. उसके छूटरों के बीच में मुँह देना, और फिर उसे गिरने से बचाने के बहाने दोनो चूचियाँ दबा देना कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था. और फिर उसे गिरने से बचाने के बाद उसके छूटरों के साथ ऐसे चिपक के खरे थे की मोउमिता को उनका लंड अपने छूटरों पर रगारता हुआ महसूस हो रहा था. ससुरजी जल्दी से बाहर तो चले गये लेकिन उनकी धोती का उठाव मोउमिता से नहीं च्छूपा था. वो समझ गयी की ससुर जी का लंड ट्यूना हुआ था. मोउमिता नहाने के लिए बातरूम में चली गयी. लेकिन उसके छूटरों के बीच ससुरजी के मुँह का स्पर्श और उसकी चूचीोन पे उनके हाथ का स्पर्श उसे अभी तक महसूस हो रहा था. उसकी चूत गीली होने लगी और पहली बार उसने ससुर जी के नाम से अपनी चूत में उंगली डाल कर अपनी वासना की भूक को शांत करने की कोशिश की. अब तो मोउमिता ने भी ससुर जी को रिझाने का प्लान बनाना शुरू कर दिया. एक बार फिर सासू मा को ससुर जी के साथ शहर जाना था. इस बार राम लाल ने पहले ही किसी को गाड़ी के लिए बोल दिया था. उसने इस बार भी निवेदिता जी को किसी के साथ गाड़ी में शहर भेज दिया. निवेदिता जी के जाने के बाद वो मोउमिता से बोला की वो खेतों में जा रहा है और शाम तक आएगा. रसिकलाल के जाने के बाद मोउमिता ने घर का दरवाज़ा अंडर से बूँद कर लिया और कापरे धोने और नहाने की टायारी करने लगी. उधेर रसिकलाल थोरी दूर जा के वापस आ गया. उसका इरादा फिर पहले की तरह अपने कमरे में साइड के दरवाज़े से घुस कर बहू को देखने का था. वो सोच रहा था की अगर किस्मत ने साथ दिया तो बहू को नंगी देख पाएगा. मोउमिता किसी काम से छत पे गयी. अचानक जब उसने नीचे झाँका तो उसकी नज़र चुपके से अपने कमरे का ताला खोलते हुए रसिकलाल पे पर गयी. मोउमिता समझ गयी की रसिकलाल चुपचाप अपने कमरे में क्यों घुस रहा है. अब तो मोउमिता ने सोच लिया की आज वो जी भर के ससुर जी को तरपाएगी. मर्दों को तरपाने में तो वो बचपन से माहिर थी. वो नीचे आ कर अपने कमरे में गयी लेकिन कमरे का दरवाज़ा खुला छ्होर दिया. उधर रसिकलाल अपने कमरे में से बहू के कमरे में झाँक रहा था. मोउमिता शीशे के सामने खरी हो कर अपनी सारी उतारने लगी. उसकी पीठ रसिकलाल की ओर थी. रसिकलाल सोच रहा था की बहू कितनी अदा के साथ सारी उतार रही है जैसे कोई मारद सामने बैठा हो और उसे रिझाने के लिए सारी उतार रही हो. उसे क्या पता था की बहू उसी को रिझाने के लिए इतने नखरों के साथ सारी उतार रही थी. धीरे धीरे बहू ने सारी उतार दी. अब वो सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउस में ही थी. मोउमिता पेटिकोट और ब्लाउस में ही आँगन में आ गयी. उसे मालूम था की ससुर जी की नज़रें उस पर लगी हुई हैं. सफेद पेटिकोट के महीन कापरे में से बहू की काली रंग की कcछि सॉफ नज़र आ रही थी. ख़ास कर जब बहू चलती तो बारी बारी से उसके मटकते हुए छूटरों पे पेटिकोट टाइट हो जाता और कcछि की झलक भी और ज़्यादा सॉफ हो जाती. रसिकलाल का लॉडा हरकत करने लगा था. बहू आँगन में बैठ के कापरे धोने लगी. पानी से उसका ब्लाउस गीला हो गया था और रसिकलाल को अंडर से झँकता हुए ब्रा भी नज़र आ रहा था.थोरी देर बाद बहू अपने कमरे में गयी और फिर शीशे के सामने खड़े हो के अपनी जवानी को निहारने लगी. अचानक बहू ने अपना ब्लाउस उतार दिया. वो अब भी शीशे के सामने खरी थी और उसकी पीठ रसिकलाल की ओर थी. फिर धीरे से बहू का हाथ पेटिकोट के नारे पे गया. रसिकलाल का तो कलेजा ही मुँह को आ गया. वो मनाने लगा – हे भगवान बहू पेटिकोट भी उतार दे. भगवान ने मानो उसकी सुन ली. बहू ने पेटिकोट का नारा खींच दिया और अगले ही पल पेटिकोट बहू के पैरों में परा हुआ था. अब बहू सिर्फ़ कcछि और ब्रा में खरी अपने आप को शीशे में निहार रही थी. क्या तराशा हुआ बदन था. भगवान ने बहू को बरी फ़ुर्सत से बनाया था. बहू की ब्रा बरी मुश्किल से उसकी चूचीोन को संभाले हुए थी और उसके विशाल चूतेर ! छ्होटी सी काली कcछि बहू के उन विशाल छूटरों को संभालने में बिल्कुल भी कामयाब नहीं थी. 80% चूटर कcछि के बाहर थे. शीशे में अपने को निहारते हुए बहू ने दोनो हाथ सिर के ऊपर उठा दिए और बाहों के नीचे बगलों में उगे हुए बालों का निरीख़्शां करने लगी. बॉल बहुत ही घने और काले थे. रसिकलाल सोच रहा था की शायद बहू को बगलों में से बॉल सॉफ करने का टाइम नहीं मिला था वरना शहर की लड़कियाँ तो बगलों के बॉल सॉफ करती हैं. अगर बगलों में इतने घने बॉल थे तो चूत पे कितने घने बॉल होंगे. इतने में बहू ने झारू उठा ली और कमरे में झारू लगाने लगी. उसकी पीठ अब भी रसिकलाल की ओर थी. मोउमिता अक्च्ची तरह जानती थी इस वक़्त रसिकलाल पे क्या बीत रही होगी. झारू लगाने के बहाने वो आगे को झुकी और अपने विशाल छूटेरों को बहुत ही मादक तरीके से पीछे की ओर उठा दिया. मोउमिता जानती थी की उसके चूटर मर्दों पे किस तराश कहर धाते हैं. राम लाल का कलेजा मुँह में आ गया. उसकी आखें तो मानो बाहर गिरने को हो रही थी. जिस तरह से मोउमिता आगे झुकी हुई थी और उसके छूटेर पीच्चे की ओर उठे हुए होने के कारण दोनो छूटेर ऐसे फैल गये थे की उनके बीच में कम से कम तीन इंच का फासला हो गया था. ऐसा लग रहा था जैसे दोनो छूटेर बहू की छ्होटी सी कcछि को निगलने के लिए तयर हों. रसिकलाल को कोई शक नहीं था की जैसे ही बहू सीधी होगी उसके विशाल छूटेर उस बेचारी छ्होटी सी ककच्ची को निगल जाएँगे. मोउमिता भी जानती थी की जुब वो सीधी होगी तो उसकी पॅंटी का क्या हाल होगा. वही हुआ. बहू झारू लगते लगते सीधी हुई और उसके विशाल छूटरों ने भूके शेरों की तरह उसकी कcछि को दबोच लिया. अब कcछि उसके दोनो छूटरों के बीच में फाँसी हुई थी. रसिकलाल का लंड फंफनाने लगा. मोउमिता ये झारू लगाने का खेल थोरी देर तक खेलती रही. बार बार सीधी हो जाती. धीरे धीरे उसकी पॅंटी छूटरों पे से सिमट के उनके बीच की दरार में फँस गयी. मोउमिता जानती थी की इस वक़्त ससुर जी पे क्या बीत रही होगी. लेकिन अभी तो खेल शुरू ही हुआ था. मोउमिता फिर से शीशे के सामने खरी हो गयी. शीशे में अपने खूबसूरत बदन को निहारते हुए बरी अदा के साथ उसने छूटरों के बीच फाँसी पॅंटी को निकाल के ठीक से अड्जस्ट किया. फिर उसने धुला हुआ पीटिकोआट और ब्लाउस निकाला. अब मोउमिता शीशे के सामने खरी हो गयी और अपनी ब्रा उतार दी. उसकी पीठ रसिकलाल की ओर थी. ब्रा उतरने के बाद उसने बरी अदा के साथ अपनी पॅंटी भी उतार दी. अब वो शीशे के सामने बिल्कुल नंगी खरी थी.
कहानी जारी रहेगी
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