Tuesday, 11 July 2017

मोउमिता और उसके ससुर रसिकलाल जी -6






क्या मतलूब आपका? हम वैसे नहीं हैं. इतने लड़के हमार पीच्चे परे थे, यहाँ तक की काई मास्टर जी लोग भी हमार पीच्चे परे थे, लेकिन हुमने तो शादी से पहले ऐसा वैसा कुकच्छ नहीं किया
"सच बहू? यकीन नहीं होता की इतनी सेक्सी लड़की को लड़कों ने कुँवारा छ्होर दिया होगा." " हुँने किसी लड़के को आज तक हाथ भी नहीं लगाने दिया." " आज तक ? बेचारा राकेश अभी तक कुँवारा ही है. सुहाग रात को भी हाथ नहीं लगाने दिया?" रसिकलाल  हंसता हुआ बोला. " हा ...पिता जी आप तो बहुत खराब हैं. सुहाग रात को तो पति का हक़ बनता है. उन्हें थोरे ही हम माना कर सकते हैं." मोउमिता बारे ही मादक धुंग से अपने छूटरों को रसिकलाल  के मुँह की ओर उचकाती हुई बोली. रसिकलाल  मोउमिता के छूटरों से सिमट कर उनकी दरार में जाती हुई कच्ची को देख देख कर पागल हो रहा था. " बहू एक बात कहूँ? तुम शादी के बाद से बहुत ही खूबसूरत हो गयी हो." " पिता जी आप तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे शादी से पहले हम बदसूरत थे." " अरे नहीं बहू शादी से पहले भी तुम बहुत सुन्दर थी लेकिन शादी के बाद से तो तुम्हारी जवानी और भी निखार आई है. हर लड़की की जवानी में शादी के बाद एकद्ूम निखार जाता है." " ऐसा क्यों पिताजी?" मोउमिता ने भोलेपन से पूकच्छा. " बहू, शादी से पहले लड़की एक कक़ची कली होती है. कली को फूल बनाने का काम तो मारद ही कर सकता है ना. सुहाग रात को लड़की एक ककच्ची कली से फूल बुन जाती है. जैसे कली में फूल बुनके निखार जाता है वैसे ही लड़की की जवानी में शादी के बाद निखार आने लगता है." " ऐसा क्या निखार आया हमारी जवानी में? हम तो पहले भी ऐसे ही थे." " बहू तुम्हारी जवानी में क्या निखार आया वो हुंसे पूच्छो. तुम्हारा बदन एकद्ूम भर गया है. कापरे भी टाइट होने लगे हैं. देखो ये नितूंब कैसे फैल गये हैं." रसिकलाल  मोउमिता के दोनो छूटरों पे हाथ फेरता हुआ बोला. " तुम्हारी ये ककच्ची भी कितनी छ्होटी हो गयी है. करीब करीब पुर ही नितूंब इस ककच्ची के बाहर हैं. शादी से पहले तो ऐसा नहीं था ना." आख़िर मोउमिता का प्लान सफल होने लगा था. रसिकलाल  का हाथ उसके उछके हुए छूटरों को सहला रहा था. कभी कभी रसिकलाल  उसकी पंटयलिने पे हाथ फेरता. मोउमिता को बहुत मज़ा रहा था. रसिकलाल  फिर बोला, " बहू लगता है तुम्हें ये गुलाबी रंग की ककच्ची बहुत पसंद है." " हा..! पिताजी आपको कैसे पता हुँने कौन से रंग की ककच्ची पहनी है?" " बहू तुम्हारे नितूंब हैं ही इतने चौरे की उनके ऊपर कसे हुए पेटिकोट में से ककच्ची भी नज़र रही है." " बस पेटिकोट ऊपर उठा के....."" बहुत ही नालयक है. लेकिन उसका लंड बरा तो है ना?"" जी वो तो ख़ासा लूंबा और मोटा है."" उस गधे के लंड जैसा ? तब तो हमारी बहू की तृप्ति कर देता होगा."" हाअ....! उस गधे के जितना तो किसी का भी नहीं हो सकता, और फिर सिर्फ़ बरा होने से कुकच्छ नहीं होता. मारद को भी तो औरत को तृप्त करने की कला आनी चाहिए. वो तो अक्सर पेंटी भी नहीं उतारते, बस साइड में करके ही कर लेते हैं."" ये तो ग़लत बात है. ऐसे तो हमारी बहू की प्यास शांत नहीं होसकती. लेकिन बहू तुम्हें ही कुकच्छ करना चाहिए. अगर औरत कामकला में माहिर ना हो तो मारद दूसरी औरतों की ओर भागने लगता है. बीवी को बिस्तेर में बिल्कुल रंडी बन जाना चाहिए तभी वो अपने पातिका दिल जीत सकती है."" आपकी बात सही है पिताजी, हम तो सब कुकच्छ करने के लिए तयारहैं. लेकिन मारद अपनी बीवी के साथ जो कुकच्छ भी करना चाहता है उसके लिए पहल तो उसे ही करनी होती है ना. वो जो भी करना चाहें हम तो हुमेशा उनका साथ देने के लिया तय्यार हैं."" हमें लगता है की हमारी बहू प्यासी ही रह जाती है. क्यों सही बात है?"" जी.."" कहो तो हम उसे समझाने की कोशिश करें?. ऐसा कब तक चलेगा ?"" नही नहीं पिताजी, उनसे कुकच्छ कहने की ज़रूरत नहीं है."" तो फिर ऐसे ही तारपति रहोगी बहू?"" और कर भी क्या सकते हैं ?"रसिकलाल  को अब विश्वास हो गया था की उसका बेटा बहू के जिस्म की प्यास्को नहीं बुझा पता है. इतनी खूबसूरत जवानी को इस तरह बर्बाद करना तो पाप है. अब तो उसे ही कुच्छ करना होगा. मोउमिता फिर से रसिकलाल  की टाँगों की मालिश करने लगी. मोउमिता का मुँह अब रसिकलाल  की ओर था. बार बार इस तरह से झुकती की उसकी बरी बरी चूचियाँ ओरबरा रसिकलाल  को नज़र आने लगते. रसिकलाल  अक्च्ची तरह जानता था की आजसूँेहरी मौका था. लोहा भी गरम था. आज अगर बहू की जवानिलूटने में कामयाब हो गया तो ज़िंदगी बुन जाएगी. रसिकलाल  का लंड बुरी तरह फनफ़नेया हुआ था, और टाइट लंगोट की साइड में से आधबाहर निकल आया था और उसकी जाँघ के साथ सता हुआ था. रसिकलाल  बोला," देखो बहू तुम चाहती हो तुम्हारी जवानी की आग ठंडी हो ?"" जी कौन औरत नहीं चाहती?"" हम तुम्हारे ससुर हैं. तुम्हारी जवानी की आग को ठंडा करना हमारा धरम है. हमें ही कुकच्छ करना होगा."" आप क्या कर सकते हैं पिताजी, हुमारी किस्मेट ही ऐसी है ?"मोउमिता एक ठंडी साँस लेते हुए रसिकलाल  की जाँघ पे तैल लगती हुई बोली." ऐसा ना कहो बहू. अपनी किस्मत तो अपने हाथ में होती है. अरे बहू, तुमने हुमारी कमर से ले के टाँगों तक तो मालिश कर दी लेकिन एक जगह तो छ्होर ही दी."" कौन सी ?"" अरे धोती के नीचे भी बहुत कुकच्छ है. वहाँ भी मालिश कर दो."" जी वहाँ..?"" भाई नहीं करना चाहती हो तो कोई बात नहीं हम वहाँ कमला से मालिश करवा लेंगे."" नहीं नहीं पिताजी कमला से क्यों ? हम हैं ना." मोउमिता ने शरमाते हुए रसिकलाल  की धोती ऊपर कर दी. नीचे का नज़ारा देख के उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. कसे हुए लंगोट का उभार देखने लायक था. मोउमिता ने लंगोट वाले इलाक़े को छ्होर के लंगोट कछारों ओर मालिश कर दी." लीजिए पिताजी वहाँ भी मालिश कर दी."" बहू वहाँ तो अभी और भी बहुत कुकच्छ है."" और तो कुच्छ भी नहीं है."" ज़रा लंगोट के नीचे तो देखो बहुत कुच्छ मिलेगा."" हाअ......! लंगोट के नीचे ! वहाँ तो आपका वो है. हमें तो बहुत शरम रही है."" शरम कैसी बहू ? तुम तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे कभी मारद का लंड नहीं देखा."" जी किसी पराए मारद का तो नहीं देखा ना."" अक्च्छा तो तुम हुमें पराया समझती हो ?""नहीं नहीं पिता जी ऐसी बात नहीं है."" अगर ऐसी बात नहीं है तो इतना शर्मा क्यों रही हो ? वो तुम्हें काटेगा नहीं. चलो लंगोट खोल दो ओर वहाँ की भी मालिश कर दो."" जी हम तो आपकी बहुँ हैं. हम आपके उसको कैसे हाथ लगा सकते हैं ?"" ठीक है बहू कोई बात नहीं, वहाँ की मालिश हम कमला से करवा लेंगे."" नहीं नहीं पिताजी ये आप क्या कह रहे हैं ? किसी पराई औरत से तो अच्छा है हम ही वहाँ की मालिश कर दें."" तो फिर श्रमा क्यों रही हो बहू ?" ये कहते हुए रसिकलाल  ने बहू का हाथ पाकर के लंगोट पे रख दिया.लंगोट के ऊपर से ससुर जी के मोटे लंड की गर्माहट से मोउमिता काँप गयी. काँपते हुए हाथों से मोउमिता ससुर जी का लंगोट खोलने की कोशिश कर रही थी. आख़िर आज ससुर जी का लंड देखने की मुराद पूरी हो ही जाएगी. जैसे ही लंगोट खुला रसिकलाल  का लंड लंगोट से आज़ाद होके एक झटके के साथ टन के खरा हो गया. 11 इंच के लूंबे मोटे काले लंड को देख के मोउमिता के मुँह से चीख निकल गयी." ऊई माआअ.. ये क्या है..?!"" क्या हुआ बहू..?"" जी.. इतना लूंबा..."" नहीं पसंद आया ?"" जी वो बात नहीं है. मारद का इतना बरा भी हो सकता है ? सच पिताजी ये तो बिकुल उस गधे के जैसा है. अब समझी सासू मया आपको क्यों गढ़ा कहती हैं."" घबराव नहीं बहू हाथ लगा के देख लो. काटेगा नहीं." मोउमिता मन ही मन सोचने लगी काटेगा तो नहीं लेकिन मेरी छूट ज़रूर फाड़ देगा. बाप का लंड तो बेटों के लंड से कहीं ज़्यादा टगरा निकला कंछन उस फौलादी लॉड को सहलाने के लिए बेचैन तो थी ही. उसने ढेर सारा टेल अपने हाथ में ले के रसिकलाल  के ताने हुए लॉड पे मलना शुरू कर दिया. ना जाने कितनी चूतो का रूस पी के इतना मोटा हो गया था. क्या भयंकर सुपरा था.

कहानी जारी रहेगी   



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