Monday, 10 July 2017

मोउमिता और उसके ससुर रसिकलाल जी -4




















रसिकलाल  के तो पसीने ही छ्छूट गये. बहू को इस तरह नंगी देख कर उसके मुँह में पानी रहा था. क्या जान लेवा बदन था बहू का. रसिकलाल  मना रहा था की बहू घूम जाए तो उसकी चूचिओन और चूत के भी दर्शन हो जाएँ. लेकिन ऐसा कुकच्छ नहीं हुआ. अब बहू अचानक आगे की ओर झुकी मानो ज़मीन पे पारी हुई किसी चीज़ को उठाने की कोशिश कर रही हो. आई करने से उसके छूटेर पीच्चे की ओर उठ गये. ऐसा करने से बहू की गोरी गोरी जांघों और छूटरों के बीच से झान्तोन के काले काले बॉल झाँकने लगे. मोउमिता फिर से सीधी हुई और रसिकलाल  की ओर पीठ रखते हुए ही ब्लाउस पहना और फिर पेट्कोट पहन लिया. रसिकलाल  जानता था की बहू ने ब्लाउस की नीचे ब्रा और पेटिकोट के नीचे cछि नहीं पहनी है. अब मोउमिता उतारे हुए कापरे ले कर आँगन में धोने गयी. बिना cछि के बहू के छूटेर चलते वक़्त ज़्यादा हिल रहे थे. कापरे धोते हुए उसका ब्लाउस गीला हो गया. अंडर से ब्रा ना पहना होने के कारण रसिकलाल  को बहू की बरी बरी चूचियाँ और निपल्स सॉफ नज़र रहे थे. बहू पैर मोर के बैठी थी. पेटिकोट उसकी मूरी ही टाँगों के बीच में फँसा हुआ था. रसिकलाल  मना रहा था की किसी तरह पेटिकोट का निचला हिस्सा बहू की टाँगों से निकल जाए. रसिकलाल  को बहुत इंतज़ार नहीं क्रना परा. मोउमिता का भी वही इरादा था. इस कला में तो वो बहुत माहिर थी. एक बार पहले भी अपने देवर के साथ ऐसा ही कुकच्छ कर चुकी थी. कापरे धोते धोते उसने पेटिकोट का निचला हिस्सा अपनी मूरी हुई टाँगों से छ्छूट के गिरने दिया. मोउमिता उसी प्रकार कापरे धोने बैठी हुई थी जैसे औरतें पेशाब करने बैठती हैं. मोउमिता को मालूम था की अब उसकी नंगी चूत पूरी तरह फैली हुई थी. क्योंकि कमला ने उसकी चूत के च्छेद के आस पास के बॉल काट दिए थे, इसलिए अब तो उसकी फूली हुई छूट की दोनो फाँकें, उनके बीच का कटाव और कटाव के बीच में से चूत के बारे बारे होंठ सॉफ नज़र रहे थे. रसिकलाल  को तो मानो लकवा मार गया. उसे डर था की कहीं उसके दिल की धड़कन रुक ना जाए. लेकिन अगले ही पल मोउमिता ने पेटिकोट फिर से ठीक कर लिया. रसिकलाल  को उसकी चूत के दर्शन मुश्किल से तीन सेकेंड के लिए ही हुए. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में घाना जंगल और उस जंगल में से झाँकति फूली हुई वो चूत ! क्या ग़ज़ब का नज़ारा था. बहू की छूट के होंठ ऐसे खुले हुए थे मानो बरसों से प्यासे हों. ऊफ़ क्या लुंबी घनी झाँटेन थी बहू की. कापरे धोने का नाटक करते हुए मोउमिता ने ब्लाउस और पेटिकोट खूब गीला कर लिया था. भीगा हुए ब्लाउस और पेटिकोट मोउमिता के बदन से चिपका जा रहा था. मोउमिता काफ़ी देर तक ससुरजी को इसी तरह तरपाती रही. इस घटना के बाद ना जाने रसिकलाल  ने बहू की चूत की याद में कितनी बार मूठ मारी. सिर्फ़ एक बार बहू की चूत लेने के लिए तो वो जान भी देने को तयर था. लेकिन क्या करता बेचारा. रिश्ता ही कुकच्छ ऐसा था. रसिकलाल  की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. मोउमिता रसिकलाल  के दिल की हालत अक्च्ची तरह जानती थी. आख़िर मर्दों को तरपाने का खेल तो वो बचपन से खेल रही थी. एक रात की बात है. सासू मा अपने कमरे में सो रही थी और रसिकलाल  भी अपने कमरे में लाइट बंड करके सोने की कोशिश कर रहा था. इतने में उसे कुकच्छ आवाज़ आई. कमरे से बाआहर झाँका तो देखा की बहू बाथरूम की ओर जा रही थी. बहू ने नाइटी पहन रखी थी और नाइटी के बारीक कापरे में से उसकी मांसल टाँगों की झलक मिल रही थी. रसिकलाल  समझ गया की बहू पेशाब करने जा रही थी. बहू की चूत से निकलते पेशाब के मादक संगीत की कल्पना से ही रसिकलाल  का लंड खरा होने लगा. मोउमिता बाथरूम में गयी लेकिन सबको सोया समझ कर उसने बाथरूम का दरवाज़ा अंडर से बूँद नहीं किया. थोरी देर मेंप्सस्सस्सस्स……..’ का मधुर संगीत रसिकलाल  के कानो में परने लगा. अचानक ज़ोर से बहू के चिल्लाने की आवाज़ आई. ” एयाया आआआअ आआआअ ईईईई ईईईईईईईईई ईईईईईईईईईईई……” रसिकलाल  घबरा के बाथरूम में भागा. उसने देखा बहू बुरी तरह घबराई हुई थी. उसके चेहरे पे हवाइयाँ उर रही थी. बहुत ही अक्च्छा मोका था. रसिकलाल  ने मोके का पूरा फ़ायदा उठाते हुए बहू को खींच के सीने से लगा लिया. मोउमिता तो बुरी तरह घबराई हुई थी. वो भी रसिकलाल  के बदन से चिपक गयी. रसिकलाल  मोउमिता की पीठ सहलाता हुआ बोला, ” क्या हुआ बहू ?” ” ज्ज्ज्जीएसस्साआँप. साँपमोउमिता नाली की ओर इशारा करते हुए बोली. ” वहाँ तो कुकच्छ नहीं है.” रसिकलाल  बहू की पीठ सहलाता हुआ बोला. बहू ने ब्रा नहीं पहना हुआ था. ” नहीं पिता जी नाली में से काले रंग का एक लूंबा मोटा साँप निकला था. शायद नाग था.” ” कैसे निकला बहू? तुम क्या कर रही थी?” रसिकलाल  का हाथ बहू की पीठ से फिसल कर उसके मोटे मोटे छूटरों पे गया. ” हम वहाँ नाली पे बैठ के पेशाब कर रहे थे की अचानक वो मोटा कला नाग निकल आया. है राम कितना डरावना था. हुमारी तो जान ही निकल गयी.” बहू को दिलासा देने के बहाने रसिकलाल  उसके विशाल छूटरों को सहलाने लगा. अचानक उसे एहसास हुआ की बहू ने ककच्ची भी नहीं पहनी हुई थी. नाइटी के अंडर से बहू की नंगी जवानी रसिकलाल  के बदन को गरमर्रही थी. ” अरे बहू तुमने आज अंडर से ब्रा और ककच्ची नहीं पहनी है?” मोउमिता को भी अचानक एहसास हुआ की वो ससुर जी से चिपकी हुई है और ससुर जी काफ़ी देर से उसकी पीठ और छूटरों को सहला रहे हैं. वो शरमाती हुई बोली, ” जी सारा दिन बदन कसा रहता है ना, इसलिए रात को सोने से पहले हम ब्रा और ककच्ची को उतार के सोते हैं.” ” तुम ठीक करती हो बहू. सारा दिन तो तुम्हारी जवानी ब्रा और ककच्ची में कसी रहती है. रात में तो उसे आज़ादी चाहिए.” नाली के पास ही एक बाल्टी में बहू की ब्रा और ककच्ची ढोने के लिए पारी हुई थी. रसिकलाल  उनकी ओर इशारा करते हुए बोला, ” वही हैं ना तुम्हारे कापरे.?” ” जी.” ” हूओनअब समझा ये नाग यहाँ क्यों आया था.” रसिकलाल  बहू की ककच्ची उठता हुआ बोला. ” क्यों आया था पिताजी ?” मोउमिता रसिकलाल  के हाथ में अपनी उतारी हुई पॅंटी देख के बुरी तरह शर्मा गयी. रसिकलाल  बहू के सामने ही उसकी पॅंटी को सूघता हुआ बोला. ” अरे बहू इस ककच्ची में से तुम्हारे बदन की खुश्बू रही है. उस काले नाग को तुम्हारे बदन की ये खुश्बू पसंद गयी होगी. जुब तुम पेशाब करने के लिए पैर फैला के बैठी तो वही खुश्बू नाग को फिर से आई. इसीलिए वो एकद्ूम से बाहर निकल आया.” रसिकलाल  बहू के मादक छूटरों को सहलाता हुआ बोला. ” ठीक है पिताजी आगे से हम अपने कापरे बाथरूम में नहीं रखेंगे.” ” हां बहू ये तो शूकर करो नाग ने तुम्हें टाँगों के बीच में नहीं काट लिया, नहीं तो बेचारे राकेश का क्या होता?” रसिकलाल  बहू के छूटेर दबाता हुआ बोला. ” हाअ! पिताजी आप तो बहुत खराब हैं. हम ऐसे ही थोरे ही काटने देते.” “तो फिर कैसे काटने देती बहू?” रसिकलाल  को ककच्ची में चिपके हुए बहू की झांतों के दो बॉल नज़र गये. ” ये बॉल तुम्हारे हैं बहू.?” मोउमिता का चेहरा सुर्ख लाल हो गया. वो हकलाती हुई बोली, ” ज्ज्ज्जीए…”बहुत लूंबे हैं. हम तो तुम्हारे सिर के बॉल देख कर ही समझ गये थे की बाकी जगह के बॉल भी खूब लूंबे होंगे.” अब तो मोउमिता का रसिकलाल  से आँख मिला पाना मुश्किल हो रहा था. ससुर जी की बाहों से अपने आप को च्छुरा के बोली, “एम्म्म..पिता जी हुमें बहुत नींद रही है अब हम सोने जा रहे हैं.” मोउमिता जल्दी से अपने कमरे में भाग गयी. वो सोच रही थी की आज दूसरी बार ससुर जी ने मोके का पूरा फ़ायदा उठाया और वो कुकच्छ ना कर सकी. उधर रसिकलाल  अपने बिस्तेर पे करवट बदल रहा था. वो बहू के सोने का इंतज़ार कर रहा था ताकि बाथरूम में जा के उसकी cछि को सूंघ के उसकी मादक चूत की महक ले सके. जैसे ही मोउमिता के कमरे की लाइट बूँद हुई रसिकलाल  बाथरूम की ओर चल परा. बाथरूम में घुस कर बहू की cछि को सूघते सूघते उसका लंड बुरी तरह खरा हो गया. रसिकलाल  बहू की नाज़ुक ककच्ची को अपने लंड के सुपरे पे रख के रगार्ने लगा. काफ़ी देर तक रगार्ने के बाद वो झाड़ गया और उसके लंड ने ढेर सारा वीरया बहू की ककच्ची में उंड़ेल दिया. रसिकलाल  कक़ची को वहीं धोने के कप्रों में डाल कर वापस अपने कमरे में कर सो गया. अगले दिन जुब मोउमिता ने धोने के लिए अपनी पॅंटी उठाई तो वीरया के दाग लगे हुए देख कर समझ गयी की ससुर जी ने रात को अपना लंड उसकी पॅंटी पे रग्रा है. अब तो मोउमिता के मन में ससुर जी के इरादों के बारे में कोई शक नहीं रह गया था.लेकिन मोउमिता जानती थी की शायद ससुर जी पहल नहीं करेंगे.
उन्हें बढ़ावा देना पड़ेगा. अब तो वो भी ससुर जी के लंड के दर्शन करने के लिए तड़प रही थी. जब से रसिकलाल  को पता लगा था की बहू रात को सोते वक़्त ब्रा और पॅंटी उतार के सोती है तब से वो इस चक्कर में रहता था की किसी तरह बहू के नंगे बदन के दर्शन हो जाएँ. इसी चक्कर में रसिकलाल  एक दिन सवेरे जल्दी उठ कर बहू को चाय देने के बहाने उसके कमरे में घुस गया. मोउमिता बेख़बर घोड़े बेच कर सो रही थी. वो पेट के बल पारी हुई थी और उसकी नाइटी जांघों तक उठी हुई थी. बहू की गोरी गोरी मोटी मांसल जांघें देख के रसिकलाल  का लंड फंफनाने लगा. उसका दिल कर रहा था की नाइटी को ऊपर खिसका के बहू के विशाल मादक छूटरों के दर्शन कर ले, लेकिन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया. रसिकलाल  ने चाय टेबल पे रखी और फिर बहू के विशाल छूटेरों को हिलाते हुए बोला, ” बहू उठो, चाय पी लो.” मोउमिता हर्बरा के उठी. गहरी नींद से इस तरह हर्बरा के उठ कर बैठते हुए मोउमिता की नाइटी बिल्कुल ही ऊपर तक सरक गयी और इससे पहले की वो अपनी नाइटी ठीक करे, एक सेकेंड के लिए रसिकलाल  को मोउमिता की गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में से घने बालों से ढाकी हुई चूत की एक झलक मिल गयी. ” अरे पिताजी आप?” ” हां बहू हुँने सोचा रोज़ बहू हुमें चाय पिलाती है तो आज क्यों ना हम बहू को चाय पिलाएँ.” ” पिताजी आपने क्यों तकलीफ़ की. हम उठ के चाय बना लेते.” मन ही मन मोउमिता जानती थी ससुर जी ने इतनी तकलीफ़ क्यों की. पता नहीं ससुर जी कितनी देर से उसकी जवानी का अपनी आँखों से रास्पान कर रहे थे. ” अरे इसमें तकलीफ़ की क्या बात है. तुम चाय पी लो.” ये कह कर रसिकलाल  चला गया. मोउमिता ने नोटीस किया की ससुर जी का लंड खरा हुआ था जिसको च्छूपाते हुए वो बाहर चले गये. मोउमिता के दिमाग़ में एक प्लान आया. वो देखना चाहती थी की अगर ससुर जी को इस तरह का मोका मिल जाए तो वो किस हद तक जा सकते हैं. उस रात मोउमिता ने सिर दर्द का बहाना किया और ससुर जी से सिर दर्द की दवा माँगी. ” पिता जी हमार सिर में बहुत दूर्द हो रहा है. सिर दर्द और नींद की गोली भी दे दीजिए.” ” हां बहू सिर दर्द के साथ तुम दो नींद की दो गोली ले लो ताकि रात में डिस्टर्ब ना हो.” मोउमिता समझ गयी की ससुरजी नींद की दो गोली खाने के लिए क्यों कह रहे हैं. उसका प्लान सफल होता नज़र रहा था. उसे पूरा विश्वास था की आज रात ससुर जी उसके कमरे में ज़रूर आएँगे. रात को सोने से पहले ससुर जी ने अपने हाथों से मोउमिता को सिर दर्द और नींद की दो गोलियाँ दी. मोउमिता गोलियाँ ले कर अपने कमरे में आई और गोलिओं को तो बाथरूम में फेंक दिया. ससुर जी को यह दिखाने के लिए की वो सिर दर्द से बहुत परेशान और थॅकी हुई है, मोउमिता ने सारी उतार के पास पारी कुर्सी पे फेंक दी. फिर उसने अपनी पॅंटी और ब्रा उतारी और बिस्तेर के पास ज़मीन पर फेंक दी. ब्लाउस के सामने वाले तीन हुक्स में से दो हुक खोल दिए. अब तो उसकी बरी बरी चूचियाँ ब्लाउस में सिर्फ़ एक ही हुक के कारण क़ैद थी. मोउमिता का आज नाइटी के बजाए ब्लाउस और पेटिकोट में ही सोने का इरादा था ताकि ससुर जी को ऐसा लगे की सिर दर्द और नींद के कारण उसने नाइटी भी नहीं पहनी. आज तो उसने अपने वरांडे की लाइट भी ऑफ नहीं की ताकि थोरी रोशनी अंडर आती रहे और ससुर जी उसकी जवानी को देख सकें. पूरी तायारी करके मोउमिता ने अपने बॉल भी खोल लिए और बिस्तेर पे बहुत मादक डंग से लेट गयी. वो पेट के बल लेटी हुई थी और उसने पेटिकोट इतना ऊपर चढ़ा लिया की अब वो उसके छूटरों से दो इंच ही नीचे था. मोउमिता की गोरी गोरी मांसल जांघें और टाँगें पूरी तरह से नंगी थी. ससुर जी के स्वागत की पूरी तायारी हो चुकी थी. रात भी काफ़ी हो चुकी थी और मोउमिता बरी बेसब्री से ससुर जी के आने का इंतज़ार कर रही थी. वो सोच रही थी की ससुर जी उसको गहरी नींद में समझ कर क्या क्या करेंगे. रात को करीब एक बजे के आस पास मोउमिता को अपने कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. उसकी साँसें तेज़ हो गयी. थोरा थोरा दर्र भी लग रहा था. ससुर जी दबे पाओं कमरे में घुसे और सामने का नज़ारा देख के उनका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. बहू इतनी थॅकी हुई और नींद में थी की उसने नाइटी तक नहीं पहनी. पेट के बल परी हुई बहू के छूटरों का उभार बहुत ही जान लेवा था. बाहर से आती हुई भीनी भीनी रोशनी में जांघों तक उठा हुआ पेटिकोट बहू की नंगी टाँगों को बहुत ही मादक बना रहा था. बहू ऐसे टाँगें फैला के परी हुई थी की थोरा सा पेटिकोट और ऊपर सरक जाता तो बहू की लाजाब चूत के दर्शन हो जाते जिसकी झलक रसिकलाल  पहले भी देख चुक्का था. आज मौका था जी भर के बहू की चूत के दर्शन करने का. रसिकलाल  मन ही मन माना रहा था की कहीं बहू ककच्ची पहन के ना सो गयी हो. तभी उसकी नज़र बिस्तेर के पास ज़मीन पे परी हुई ककच्ची और ब्रा पे पर गयी. रसिकलाल  का लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया था. रसिकलाल  सोच रहा था.की बेचारी बहू इतनी नींद में थी की ककच्ची और ब्रा भी ज़मीन पे ही फेंक दी. अब तो उसे यकीन था की बहू पेटिकोट और ब्लाउस के नीचे बिकुल नंगी थी. सारा दिन ब्रा और ककच्ची में कसी हुई जवानी को बहू ने रात को आज़ाद कर दिया था. और आज रात रसिकलाल  बहू की आज़ाद जवानी के दर्शन करने का इरादा कर के आया था. फिर भी वो यकीन करना चाहता था की बहू गहरी नींद में सो रही है. उसने मोउमिता को धीरे से पुकारा, ” बहू! बहू! सो गयी क्या?” कोई जबाब नहीं. अब रसिकलाल  ने धीरे से मोउमिता को हिलाया. अब भी बहू ने कोई हरकत नहीं की. रसिकलाल  को यकीन हो गया की नींद की गोली ने अपना काम कर दिया है. मोउमिता आँखें बूँद किए परी हुई थी. अब रसिकलाल  की हिम्मत बरह गयी. वो बहू की ककच्ची को उठा के सूघने लगा. बहू की ककच्ची की गंध ने उसे मदहोश कर दिया. सारा दिन पहनी हुई ककच्ची में चूत, पेशाब और शायद बहू की चूत के रूस की मिलीजुली खुश्बू थी. लॉडा बुरी तरह से फँफनाया हुआ था. रसिकलाल  ने बहू की ककच्ची को जी भर के चूमा और उसकी मादक गंध का आनंद लिया. अब रसिकलाल  पेट के बल परी हुई बहू के पैरों की तरफ गया. बहू की अलहारह जवानी अब उसके सामने थी. रसिकलाल  ने धीरे धीरे बहू के पेटिकोट को ऊपर की ओर सरकाना शुरू कर दिया. थोरी ही देर में पेटिकोट बहू की कमर तक ऊपर उठ चक्का था. सामने का नज़ारा देख के रसिकलाल  की आँखें फटी रह गयी. बहू कमर से नीचे बिल्कुल नंगी थी. आज तक उसने इतना खूबसूरत नज़ारा नहीं देखा था. बहू के गोरे गोरे मोटे मोटे फैले हुए छूटेर बाहर से आती हुई भीनी भीनी रोशनी में बहुत ही जान लेवा लग रहे थे. रसिकलाल  अपनी ज़िंदगी में काई औरतों को चोद चक्का था लेकिन आज तक इतने सेक्सी नितूंब किसी भी औरत के नहीं थे. रसिकलाल  मन ही मन सोचने लगा की अगर ऐसी औरत उसे मिल जाए तो वो ज़िंदगी भर उसकी गांद ही मारता रहे. लेकिन ऐसी किस्मत उसकी कहाँ? आज तक उसने किसी औरत की गांद नहीं मारी थी. मारने की तो बहुत कोशिश की थी लेकिन उसके गधे जैसे लंड को देख कर किसी औरत की हिम्मत ही न्हीं हुई. पता नहीं बेटा बहू की गांद मारता है की नहीं. उधर मोउमिता का भी बुरा हाल था. उसने खेल तो शुरू कर दिया लेकिन अब उसे बहुत शरम रही थी और थोरा डर भी लग रहा था.. हालाँकि एक बार पहले वो ससुर जी को अपने नंगे बदन के दर्शन करा चुकी थी लेकिन उस वक़्त ससुर जी बहुत दूर थे. आज तो ससुर जी अपने हाथों से उसे नंगी कर रहे थे. फैली हुई टाँगों के बीच से चूत के घने बालों की झलक मिल रही थी. रसिकलाल  ने बहुत ही हल्के से बहू के नंगे छूटरों पे हाथ फेरना शुरू कर दिया. मोउमिता के दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. रसिकलाल  ने हल्के से एक उंगली मोउमिता के छूटरों की दरार में फेर दी. लेकिन मोउमिता जिस मुद्रा में लेटी हुई थी उस मुद्रा में उसकी गांद का च्छेद दोनो चूतरो के बीच बंड था. आकीर मोउमिता एक औरत थी. एक मारद का हाथ उसके नंगे छूटरों को सहला रहा था. अब उसकी चूत भी गीली होने लगी. अभी तक मोउमिता अपनी दोनो टाँगें सीधी लेकिन थोरी चौरी करके पेट के बाल लेटी हुई थी.. ससुर जी को अपनी चूत की झलक और अक्च्ची तरह देने के लिए अब उसने एक टाँग मोर के ऊपर कर ली. ऐसा करने से अब मोउमिता की चूत उसकी टाँगों के बीच में से सॉफ नज़र आने लगी. बिल्कुल सॉफ तो नहीं कहेंगे, लेकिन जितनी सॉफ उस भीनी भीनी रोशनी में नज़र सकती थी उतनी सॉफ नज़र रही थी. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच घनी और लुंबी लुंबी झांतों से ढाकी बहू की खूब फूली हुई चूत देख के रसिकलाल  की लार टपकने लगी. हालाँकि गांद का च्छेद अब भी नज़र नहीं रहा था. रसिकलाल  ने नीचे झुक के अपना मुँह बहू की जांघों के बीच डाल दिया. बहू की झांतों के बॉल उसकी नाक और होंठों से टच कर रहे थे. अब कुत्ते की तरह वो बहू की चूत सूंघने लगा. मोउमिता की चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी और अब उसमे से बहुत मादक खुश्बू रही थी. आज तक तो रसिकलाल  बहू की पॅंटी सूंघ कर ही काम चला रहा था लेकिन आज उसे पता चला की बहू की चूत की गंध में क्या जादू है. रसिकलाल  को ये भी अक्च्ची तरह समझ गया कोई कुत्ता कुतिया को चोद्ने से पहले उसकी चूत क्यों सूघता है. रसिकलाल  ने हिम्मत करके हल्के से बहू की चूत को चूम लिया. मोउमिता इस के लिए तयर नहीं थी. जैसे ही रसिकलाल  के होंठ उसकी चूत पे लगे वो हार्बरा गयी. रसिकलाल  झट से चारपाई के नीचे च्छूप गया. मोउमिता अब सीधी हो कर पीठ के बाल लेट गयी लेकिन अपना पेटिकोट जो की कमर तक उठ चक्का था नीचे करने की कोई कोशिश नहीं की. रसिकलाल  को लगा की बहू फिर सो गयी है तो वो फिर चारपाई के नीचे से बाहर निकला. बाहर निकल के जो नज़ारा उसेके सामने था उसे देख के वो डंग रह गया.बहू अब पीठ के बाल परिहुई थी. पेटिकोट पेट तक ऊपर था ओर उसकी चूत बिल्कुल नंगी थी. रसिकलाल  बहू की चूत देखता ही रहा गया. घने काले लूंबे लूंबे बालों से बहू की चूत पूरी तरह ढाकी हुई थी. बॉल उसकी नाभि से करीब तीन इंच नीचे से ही शुरू हो जाते थे. रसिकलाल  ने आज तक किसी औरत की चूत पे इतने लूंबे और घने बॉल नहीं देखे थे. पूरा जंगल उगा रखा था बहू ने. ऐसा लग रहा था मानो ये घने बॉल बुरी नज़रों से बहू की चूत की रक्षा कर रहे हों. अब रसिकलाल  की हिम्मत नहीं हुई की वो बहू की चूत को सहला सके क्योंकि बहू पीठ के बाल पारी हुई थी और अब अगर उसकी आँख खुली तो वो रसिकलाल  को देख लेगी. बहू के होंठ थोरे थोरे खुले हुए थे. रसिकलाल  बहू के उन गुलाबी होंठों को चूसना चाहता था लेकिन ऐसा कर पाना मुश्किल था. फिर अचानक रसिकलाल  के दिमाग़ में एक प्लान आया. उसने बहू का पेटिकोट धीरे से नीचे करके उसकी नंगी चूत को ढक दिया. अब उसने अपना फनफ़नेया हुआ लॉडा अपनी धोती से बाहर निकाला और धीरे से बहू के खुले हुए गुलाबी होंठों के बीच टीका दिया. मोउमिता को एक सेकेंड के लिए साँझ नहीं आया की उसकी होंठों के बीच ये गरम गरम ससुर जी ने क्या रख दिया लेकिन अगले ही पल वो साँझ गयी की उसके होंठों के बीच ससुर जी का ताना हुआ लॉडा है. मारद के लंड का टेस्ट वो अक्च्ची तरह पहचानती थी. अपने देवर का लंड वो ना जाने कितनी बार चूस चुकी थी. वो एक बार फिर हार्बारा गयी लेकिन इस बार बहुत कोशिश करके वो बिना हीले आँखें बूँद किए पारी रही. ससुर जी के लंड के सुपरे से निकले हुए रस ने मोउमिता के होंठों को गीला कर दिया. मोउमिता के होंठ थोरे और खुल गये. रसिकलाल  ने देखा की बहू अब भी गहरी नींद में है तो उसकी हिम्मत और बरह गयी. बहू के होंठों की गर्मी से उसका लंड बहू के मुँह में घुसने को उतावला हो रहा था. रसिकलाल  ने बहुत धीरे से बहू के होंठों पे पाने लंड का दबाव बारहाना शुरू किया. लेकिन लंड तो बहुत मोटा था. मुँह में लेने के लिए मोउमिता को पूरा मुँह खोलना परता. रसिकलाल  ने अब अपना लंड बहू के होंठों पे रगर्ना शुरू कर दिया और साथ में उसके मुँह में भी घुसेरने की कोशिश करने लगा. रसिकलाल  के लंड का सुपरा बहू के थूक से गीला हो चक्का था. मोउमिता की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी. उसका अपने ऊपर कंट्रोल टूट रहा था. उसका दिल कर रहा था की मुँह खोल के ससुर जी के लंड का सुपरा मुँह में लेले. अब नाटक ख्तम करने का वक़्त गया था. मोउमिता ने ऐसा नाटक किया जैसे उसकी नींद खुल रही हो. रसिकलाल  तो इस के लिए टायर था ही. उसने झट से लंड धोती में कर लिया. बहू का पेटिकोट तो पहले ही तीक कर दिया था. मोउमिता ने धीरे धीरे आँखें खोली और ससुर जी को देख कर हार्बारा के उठ के बैठने का नाटक किया. वो घबराते हुए अपने अस्त व्यस्त कापरे ठीक करते हुए बोली, ” पिता जी.आअप..! यहाँ क्या कर रहे हैं?” ” घबराव नहीं बेटी, हम तो देखने आए थे की कहीं तुम्हारी तबीयत और ज़्यादा तो खराब नहीं हो गयी. कैसा लग रहा है ?” रसिकलाल  बहू के माथे पे हाथ रखता हुआ बोला जैसे सुचमुच बहू का बुखार चेक कर रहा हो. मोउमिता के ब्लाउस के तीन हुक खुले हुए थे. वो अपनी चूचीोन को धकते हुए बोली, ” जी.. मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ. नींद की गोलियाँ खा के अक्च्ची नींद गयी थी. लेकिन आप इतनी रात को.?” ” हां बेटी, बहू की तबीयत खराब हो तो हुमें नींद कैसे आती. सोचा देख लें तुम ठीक से सो तो रही हो.” ” सच पिता जी आप कितने अक्च्चे हैं.. हम तो बहुत लकी हैं जिसे इतने अक्च्चे सास और ससुर मिले.” ” ऐसा ना कहो बहू. तुम रोज़ हुमारी इतनी सेवा करती हो तो क्या हम एक दिन भी तुम्हारी सेवा नहीं कर सकते? हुमारी अपनी बेटी होती तो क्या हम ये सूब नहीं करतेरसिकलाल  प्यार से बहू की पीठ सहलाते हुए बोला. मोउमिता मून ही मून हंसते हुए सोचने लगी, अपनी बेटी को भी आधी रात को नंगी करके उसके मुँह लंड पेल देते? ” पिता जी हम बिल्कुल ठीक हैं. आप सो जाइए.” ” अक्च्छा बहू हम चलते हैं. आज तो तुमने कापरे भी नहीं बदले. बहुत तक गयी होगी.” ” जी सिर में बहुत दर्द हो रहा था.” ” हम समझते हैं बहू. अरे ये क्या ? तुम्हारी ककच्ची और ब्रा नीचे ज़मीन पे पारी हुई है.” रसिकलाल  ऐसे बोला जैसे उसकी नज़र बहू की ककच्ची और ब्रा पर अभी पारी हो. रसिकलाल  ने बहू की ककच्ची और ब्रा उठा ली. ” जी हमें दे दीजिए.” मोउमिता शरमाते हुए बोली. ” तुम आराम करो हम धोने डाल देंगे. लेकिन ऐसे अपनी ककच्ची मूत पेंका करो. वो कला नाग सूघता हुआ जाएगा तो क्या होगा? उस दिन तो तुम बच गयी नहीं तो टाँगों के बीच में ज़रूर काट लेता.” मोउमिता ने मम ही मन कहा वो काला नाग काटे या ना काटे लेकिन ससुर जी की टाँगों के बीच का काला नाग ज़रूर किसी दिन काट लेगा. रसिकलाल  बहू की ककच्ची और ब्रा ले के चला गया. मोउमिता अच्छी तरह जानती थी की उसकी ककच्ची का क्या हाल होने वाला है. रसिकलाल  बहू की ककच्ची अपने कमरे में ले गया और उसकी मादक खुश्बू सूंघ के अपने लंड के सुपारे पे रख के रगार्ने लगा. हुमेशा की तरह ढेर सारा वीरया बहू की ककच्ची में उंड़ेल दिया और लंड कुकच्ची से पोंच्छ के उसे धोने में डाल दिया. ककच्ची की दास्तान मोउमिता को अगले दिन कापरे ढोते समय पता लग गयी. मोउमिता का प्लान तो सफल हो गया और ससुर जी के इरादे भी बिल्कुल सॉफ हो गये थे लेकिन मोउमिता अभी तक ससुर जी के लंड के दर्शन नहीं कर पाई थी. लेकिन वो जानती थी कीएक दिन फिर से सासू मा को शहर जाना था। इस बार रसिकलाल  ने फिर उन्हें अकेला ही भेज दिया. बीवी के जाने के बाद वो मोउमिता से बोला, " बहू आज बदन में बहुत दर्द हो रहा है ज़रा कमला को बुला दो. बहुत cछि मालिश करती है. बदन का दर्द दूर कर देगी." ये सुन के मोउमिता को जलन होने लगी. वो जानती थी कमला कैसी मालिश करेगी. मोउमिता ने सोचा आज अक्च्छा मौका है. सासू मा भी नहीं है. वो बोली, " क्यों पिताजी ? घर में बहू के रहते आप किसी और को क्यों मालिश के लिए बुलाना चाहते हैं? आपने हमारी मालिश कहाँ देखी है? एक बार करवा के देखिए, कमला की मालिश भूल जाएँगे." " अरे नहीं बेटी, हम अपनी बहू से कैसे मालिश करवा सकते हैं ?" रसिकलाल  के मन में लड्डू फूटने लगे. वो सोच रहा था की ये तो सुनेहरी मौका है. हाथ से नहीं जाने देना चाहिए. "आप हमे बेटी बोल रहे हैं लेकिन शायद अपनी बेटी की तरह नहीं मानते? आपकी सेवा करके हुमें बहुत खुशी मिलती है." " ऐसा ना कहो बहू. तुम बेटी के समान नहीं हमारी बेटी ही हो. तुम सुचमुच बहुत अक्च्ची हो. लेकिन तुम्हारी सासू मा को पता चल गया तो वो मुझे मार डालेगी." " कैसे पता चलेगा पिताजी वो तो शाम तक आएगी. चलिए अब हम आपकी मालिश कर देते हैं. आपको भी तो पता चले की आपकी बहू कैसी मालिश करती है." " ठीक है बहू. लेकिन अपनी ससासू मा को बताना नहीं." " नहीं बताएँगे पिताजी, आप बेफिकर रहिए." रसिकलाल  ने जल्दी से ज़मीन पे चटाई बिच्छा दी और धोती को छ्होर के सब कापरे उतार के लेट गया. उसका दिल धक धक कर रहा था. मोउमिता रसिकलाल  के गथे हुए बदन को देखती ही रह गयी. वाकाई में सुच्चा मरद था. चौरी छ्चाटी और उसपे घने काले बाल देख कर तो मोउमिता के दिल पे च्छूरियँ चलने लगी. मोउमिता ने रसिकलाल  की टाँगों की मालिश शुरू कर दी. सारी के पल्लू से उसने घूँघट भी कर रखा था. बहू के मुलायम हाथों का स्पर्श रसिकलाल  को बहुत अक्च्छा लग रहा था. मोउमिता ने पहले से ही प्लान बना रखा था. अचानक तैल की बॉटल मोउमिता की सारी पे गिर गयी. " ऊफ़ हमारी सारी खराब हो गयी." " बहू सारी पहन के कोई मालिश करता है क्या. खराब कर ली ना अपनी सारी? चलो सारी उतार लो, फिर मालिश करना." " जी, मैं सलवार कमीज़ पहन के आती हूँ." " अरे उसकी क्या ज़रूरत है? सारी उतार लो बस. सलवार पे तैल गिर गया तो सलवार उतारनी पर जाएगी. अगर सलवार उतारना मंज़ूर है तो ठीक है सलवार कमीज़ पहन आओ." " हा .... सलवार कैसे उतारेंगे . सलवार उतारने से तो अक्च्छा है की सारी ही उतार दूं, लेकिन आपके सामने सारी कैसे उतारुन. हुमें तो शरम आती है.' " शरम कैसी बहू? तुम तो हमारी बेटी के समान हो. और फिर हम तो तुम्हें पेटिकोट ब्लाउस में कई बार देख चुके हैं. अपने ससुर से कोई शरमाता है क्या?" " ठीक है पिताजी. उतार देती हूँ." मोउमिता ने बरी अदा के साथ अपनी सारी उतार दी. अब वो केवल पेटिकोट और ब्लाउस में थी. पेटिकोट उसने बहुत नीचा बाँध रखा था. ब्लाउस भी सामने से लो कट था.
अचानक मोउमिता कमरे से बाहर भागी, " अरे क्या हुआ बहू कहाँ जा रही हो?" रसिकलाल  ने पूचछा. " जी बस अभी आई. अपनी चुननी तो ले आउ." रसिकलाल  तो बहू के ऊपेर नीचे होते हुए नितुंबों को देख कर निहाल हो गया. मोउमिता थोरी देर में वापस गयी. अब उसने चुननी से घूँघट निकाल रखा था. लेकिन कमर पे बहुत नीचे बँधे पेटिकोट और लो कट ब्लाउस में से उसकी जवानी बाहर निकल रही थी. मोउमिता रसिकलाल  के पास बैठ गयी और उसने फिर से रसिकलाल  की टाँगों की मालिश शुरू कर दी. इस वक़्त मोउमिता का सिर रसिकलाल  के सिर की ओर था. मालिश करते हुए बहू इस प्रकार से झुकी हुई थी की लो कट ब्लाउस में से उसकी बरी बरी झूलती हुई चूचियाँ रसिकलाल  को सॉफ दिखाई दे रही थी. मालिश करते हुए दोनो इधेर उधेर की बातें कर रहे थे. मोउमिता को अक्च्ची तरह मालूम था की ससुर जी की नज़रें उसके ब्लाउस के अंडर झाक रही हैं. आज तो मोउमिता ने ठान लिया था की ससुर जी को पूरी तरह तरपा के ही छ्होरेगी. मर्दों को तरपाने की कला में तो वो माहिर थी ही. इतने में रसिकलाल  ने बहू से पूछा, " बहू तुमने वो गाना सुना है, ' चुनरी के नीचे क्या है? चोली के पीच्चे क्या है?" " जी पिता जी सुना है. आपको अक्च्छा लगता है.?" मोउमिता आगे झुकते हुए ससुर जी को अपनी गोरी गोरी चूचीोन के और भी ज़्यादा दर्शन कराती हुई बोली. " हां बहू बहुत अच्छा लगता है." मोउमिता समझ रही थी की ससुर जी का इशारा किस ओर है. ससुर जी की जांघों तक मालिश करने के बाद मोउमिता ने सोचा की अब ससुर जी को उसके नितुंबों के दर्शन कराने का वक़्त गया है.


 कहानी जारी रहेगी   


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